24.10.15

आयुर्वेद में नजला-जुकाम और ज्योतिषीय कारण

आयुर्वेद में नजला-जुकाम और ज्योतिषीय कारण

नजला-जुकाम एक बहुत ही आम और हमेशा परेशान करने वाला रोग है। वास्तव में यह रोग नहीं, शरीर की एक सांवेदनिक प्रतिक्रिया है, जो मौसम बदलने, नाक में धूल कण जाने आदि से उत्पन्न होती है। पूरे विश्व के लोग कभी न कभी, इसके शिकार होते ही हैं। नज़ला-जुकाम शीत के कारण होने वाला एक ऐसा रोग है, जिसमें नाक से पानी बहने लगता है। मामूली- सा दिखने वाला यह रोग, कफ की अधिकता के कारण अधिक कष्टदायक हो जाता है। यों तो ऋतु आदि के प्रभाव से दोष संचय काल में संचित हो कर अपने प्रकोप काल में ही कुपित होते हैं, परंतु दोषों के प्रकोपक कारणों की अधिकता, या प्रबलता के कारण तत्काल भी कुपित हो जाते हैं, जिससे जुकाम हो जाता है; अर्थात नज़ला-जुकाम शीत काल के अतिरिक्त भी हो सकता है।
आयुर्वेद में नजला-जुकाम 6 प्रकार के बताये गये हैं। आचार्य चरक ने इसके चार प्रकार बताये हैं, जबकि आचार्य सुश्रुत ने पांच प्रकार माने हैं।
वायुजन्य (वातज) : वायु से उत्पन्न जुकाम में नाक में वेदना, सुंई चुभने जैसी पीड़ा, छींक आना, नाक से पतला स्राव आना, गला, तालु और होठों का सूख जाना, सिर दर्द और आवाज बैठ जाना आदि लक्षण होते हैं।
पित्तजन्य (पित्तज) : नाक से गर्म और पीले रंग का स्राव आना, नाक का अगला भाग पक जाना, ज्वर, मुख शुष्क हो जाना, बार-बार प्यास लगना, शरीर दुबला और त्वचा चमकरहित होना इसके लक्षण हैं। नाक से धुंआ निकलता महसूस होता है।
कफजन्य (कफज) : आंखों में सूजन, सिर में भारीपन, खांसी, अरुचि, नाक द्वारा कफ का स्राव, लाला स्राव और नाक के भीतर, गले और तालु में 'खुजली होती है।
त्रिदोषज : उपर्युक्त तीनों दोषों से उत्पन्न जुकाम बार-बार हो जाता हैे। साथ ही तीनों दोषों के मिलेजुले लक्षण दिखाई देते हैं। शरीर में अत्यधिक पीड़ा होती है।
रक्तजन्य (रक्तज) : नाक से लाल रंग का स्राव होता है। रोगी की आंखें लाल हो जाती हैं। मुंह से बदबू आती है। सीने में दर्द, गंध का ठीक तरह से पता न चलना आदि लक्षण होते हैं।
दूषित : नजला-जुकाम के सभी दोषों की अत्यंत वृद्धि हो जाने से बार-बार नाक बहना, सांस में दुर्गंध, नाक का बार-बार बंद होना-खुलना, सुंगंध-दुर्गंध पता न चलना आदि लक्षण होते हैं।
नजला-जुकाम के प्रमुख कारण : नजला-जुकाम मस्तिष्कजन्य रोग होते हुए भी इस रोग का मूल कारण अग्नि है; अर्थात जब जठराग्नि मंद होती है, तो इसमें अजीर्ण हो जाता है। पाचन क्रिया बिगड़ जाती है और भोजन ठीक से पच नहीं पाता एवं कब्ज हो जाने के कारण उपचय पदार्थ का विसर्जन नही होता, जिसके कारण जुकाम की उत्पत्ति होती है क्योंकि शरीर में एकत्रित विजातीय तत्व जब अन्य रास्तों से बाहर नहीं निकल पाते, तो वे जुकाम के रूप में नाक से निकलने लगते हैं। यह जुकाम अत्यधिक कष्टदायक होता है। इससे सिर, नाक, कान, गला तथा नेत्र के विकार उत्पन्न होने लगते हैं।
जुकाम का कारण मानसिक गड़बड़ी भी देखा गया है। इसके अतिरिक्त अन्य कारण हैं। मल, मूत्र, छींक, खांसी आदि वेगों को रोकना, नाक में धूल कण का प्रवेश होना, अधिक बोलना, क्रोध करना, अधिक सोना, अधिक जागरण करना, शीतल जल और ठंडे पेय पीना, अति मैथुन करना, रोना, धुएं आदि से मस्तिष्क में कफ जम जाना। साथ ही साथ मस्तिष्क में वायु की वृद्धि हो जाती है। तब ये दोनों दोष मिल कर नजला-जुकाम व्याधि उत्पन्न करते हैं।
जुकाम को साधारण रोग मान कर उसकी उपेक्षा करने से यह अति तकलीफदह हो जाता है; साथ ही अन्य विकार भी उत्पन्न होने लगते हैं। जुकाम बिगड़ने पर वह नजले का रूप धारण कर लेता है।
नजला हो जाने पर नाक में श्वास का अवरोध, नाक से हमेशा पानी बहना, नाक पक जाना, बाहरी गंध का ज्ञान न होना, मुख की दुर्गंध आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
कष्टदायी है जुकाम का बिगड़ना : जुकाम के बिगड़ जाने की अवस्था के बाद मस्तिष्क की अनेक व्याधियां होती हैं, जो कष्टदायी हो जाती हैं। इस रोग के कारण बहरापन, कान के पर्दे में छेद तथा कान, नाक, तालु, श्वास नलिका में कैंसर होने की संभावना रहती है। अंधापन भी उत्पन्न हो जाता है। कहा जाता है कि नजले ने शरीर के जिस अंग में अपना आश्रय बना लिया, वही अंग वह खा गया। दांतों में घुस गया, तो दांत गये, कान में गया, तो कान गये, आंखों में गया, तो आंखे गयी, छाती में जमा हो, तो दमा और कैंसर जैसी व्याधियां उत्पन्न कर देता है। सिर पर गया, तो बाल गये।
चिकित्सा : सबसे पहले रोग को उत्पन्न करने वाले कारणों को दूर करें। कफवर्द्धक, मधुर, शीतल, पचने में भारी पदार्थ न खाएं। दिन में सोने, ठंडी हवा का झोंका सीधे शरीर पर आने देने, अति मैथुन आदि से दूर रहें। पचने में हल्का, गर्म और रूखा आहार लें। सौंठ, तुलसी, अदरक, बैंगन, दूध, तोरई, हल्दी, मेथी दाना, लहसुन, प्याज आदि सेवनीय चीजें हैं। सोंठ के एक चम्मच को चार कप पानी में पका कर बनाया गया काढ़ा दिन में 3 -4 बार पीना लाभदायक है।
अन्य घरेलू उपचार :
सुहागे को तवे पर फुला कर चूर्ण बना लें। नजला-जुकाम होने पर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से पहले ही दिन, या ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों में जुकाम ठीक हो जाएगा।
काली मिर्च और बताशे पाव भर जल में पकावें। चौथाई रहने पर इसे गरमागरम पी लें। प्रातः खाली पेट और रात को सोते समय तीन दिन उपयोग करें। नजला-जुकाम से राहत मिलेगी।
5 ग्राम अदरक के रस में 5 ग्राम तुलसी का रस मिला कर 10 ग्राम शहद से लें।
काली मिर्च को दूध में पका कर सुबह-शाम पीएं।
अमरूद के पत्ते चाय की तरह उबाल कर पीएं।
षडबिंदु तेल की 4-4 बूंदे दोनों नथुनों में टपकाने से शीघ्र ही सिर के विकार नष्ट हो जाते हैं।
गर्म दूध के साथ सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करें।
दिन में 2 बार अनार, या संतरे के छिलकों को उबाल कर उसका काढ़ा पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
चूने के पानी में गुड़ घोल कर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।
दो ग्राम मुलहठी चूर्ण को शहद के साथ दिन में 3 बार चाटने से जुकाम ठीक होता है।

ज्योतिषीय कारण : यों तो यह रोग आम तौर पर सभी को कभी-कभी होता ही है, लेकिन फिर भी कुछ लोग इससे विशेष प्रभावित रहते हैं और जिंदगी भर इस रोग से ग्रस्त रहते हैं। जाहिर है कि उनकी ग्रह स्थितियां ही कुछ ऐसी रही होंगी।
नज़ला-जुकाम मस्तिष्कजन्य रोग है। फिर भी इसका मूल कारण अग्नि है; अर्थात् पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। काल पुरुष की कुंडली में पाचन का स्थान पंचम भाव है, जिसका प्रतिनिधित्व सिंह राशि करती है। मस्तिष्क का स्थान प्रथम भाव है। इन दोनों भावों का आपसी त्रिकोणिक संबंध है। अग्नि के कारक ग्रह सूर्य और मंगल हैं और इसके विपरीत चंद्र और शुक्र शीतलता के प्रतीक हैं। नजले का स्राव नाक से होता है। इसलिए द्वितीय और तृतीय भाव भी इससे जुड़े हैं। यदि कुंडली में लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश, सूर्य, मंगल, चंद्र, शुक्र दुष्प्रभावों में हों, तो नजला-जुकाम जातक को सदैव तंग करता है। खास तौर पर जब संबंधित ग्रह की दशांतर्दशा चल रही हो और गोचर ग्रह भी अशुभ फल दे रहे हों, तब रोग अपनी चरम सीमा पर होता है।
विभिन्न लग्नों में नजला-जुकामः
मेष लग्न : यदि लग्नेश अष्टम भाव, सूर्य जल राशि, चंद्र पंचम भाव में शनि, या राहु-केतु से प्रभावित हो। शुक्र अष्टम, बुध तृतीय भाव में हों, तो जातक को नजला-जुकाम और सर्दी जल्द लगती है, जिससे वह सदैव इस रोग से पीड़ित रहता है।
वृष लग्न : लग्नेश मीन, या कर्क राशि में हो, सूर्य वृश्चिक राशि में हो, चंद्र पंचम भाव में हो और गुरु से दृष्ट हो, तो जातक को नजला-जुकाम होता है।
मिथुन लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में सूर्य से अस्त हो, पंचमेश शुक्र, पंचम, या अष्टम भाव में मंगल से दृष्ट हो और मंगल स्वयं जल राशि में हो, चंद्र भी मंगल से दृष्ट हो, तो जातक को नजला -जुकाम सदैव तंग करता रहता है।
कर्क लग्न : लग्नेश चंद्र षष्ठ भाव, या अष्टम भाव में हो, बुध लग्न में हो, पंचमेश मंगल भी लग्न में हो और सूर्य द्वितीय भाव में हो, शुक्र द्वितीय भाव में हो और राहु-केतु से दृष्ट, या युक्त हो, तो जातक को नजला संबंधित रोग देता है।
सिंह लग्न : लग्नेश सूर्य अष्टम भाव में, शनि तृतीय भाव में, मंगल कर्क राशि में, पंचमेश गुरु जल राशि में हो, शुक्र अष्टम भाव में हो, राहु लग्न में, या लग्न को देखता हो, तो जातक को नजला-जुकाम की शिकायत बनी रहती है।
कन्या लग्न : लग्नेश बुध जल राशि में हो और सूर्य से अस्त हो, मंगल भी जल राशि में हो और चंद्र को देखता हो, चंद्र-शुक्र एक साथ हों, या एक दूसरे से द्विर्द्वादश हों, गुरु तृतीय भाव में हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम बना रहता है।
तुला लग्न : लग्नेश शुक्र और पंचमेश एक दूसरे से युक्त हो कर जल राशि में हों, सूर्य पंचम भाव में हो, राहु-केतु से दृष्ट हो, मंगल नीच का हो, लग्न में गुरु देखता हो, या सूर्य को देखता हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम होता है।
वृश्चिक लग्न : मंगल लग्नेश और षष्ठेश हो कर सूर्य से अस्त हो और मीन राशि हो, चंद्र त्रिक भावों में हो और राहु से दृष्ट हो, शुक्र तृतीय भाव में हो, तो जातक को उपर्युक्त रोग होता है।
धनु लग्न : लग्नेश अष्टम भाव में, सूर्य द्वादश भाव में, बुध लग्न में, सूर्य द्वितीय, या तृतीय भाव में हो, चंद्र शुक्र, या बुध से युति कर रहा हो, बुध अस्त नहीं हो, राहु लग्नेश को देखता हो, तो नजला-जुकाम होता है।
मकर लग्न : लग्नेश शनि तृतीय, या एकादश भाव में हो, सूर्य पंचम भाव में राहु से दृष्ट, या युक्त हो, पंचमेश शुक्र कर्क राशि में चंद्र से दृष्ट, या युक्त हो, अकारक गुरु लग्न में हो, तो जातक को आम तौर पर नज़ला-जुकाम रहता ही है।
कुंभ लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में, पंचमेश बुध मीन में, लग्न में सूर्य, शुक्र तृतीय भाव में, गुरु अग्निकारक राशियों में हो, राहु-केतु द्विस्वभाव राशियों में हों, चंद्र जल राशियों में हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम होता ही रहता है।
मीन : लग्नेश अष्टम भाव में चंद्र से युक्त हो, शुक्र तृतीय भाव में, पंचम भाव में शनि सूर्य से युक्त हो, राहु लग्न में हो, तो जातक को नज़ला-जुकाम होता है। उपर्युक्त सभी योग चलित पर आधारित हैं। जब संबंधित ग्रह की दशा-अंतर्दशा और गोचर प्रतिकूल रहते हैं, तो जातक को संबंधित रोग से जूझना पड़ता है।

23.10.15

भगवान काल भैरव से जुड़े कुछ तथ्य -

भगवान काल भैरव से जुड़े कुछ तथ्य -

1. काल भैरव भगवान शिव का अत्यन्त ही उग्र तथा तेजस्वी स्वरूप है।
2. सभी प्रकार के पूजन , हवन , प्रयोग में रक्षार्थ इनका पुजन होता है।
3. ब्रह्मा का पांचवां शीश खंडन भैरव ने ही किया था।
4. इन्हे काशी का कोतवाल माना जाता है।
काल भैरव मंत्र और साधना -
मन्त्र - ॥ ऊं भ्रं कालभैरवाय फ़ट ॥
साधना विधि - काले रंग का वस्त्र पहनकर तथा काले रंग का ही आसन बिछाकर, दक्षिण दिशा की और मुंह करके बैठे तथा उपरोक्त मन्त्र की 108 माला रात्रि को करें।
लाभ - इस साधना से भय का विनाश होता है।

न बोलने में नौ गुण। ये नौ गुण इस प्रकार हैं।

न बोलने में नौ गुण। ये नौ गुण इस प्रकार हैं।

1. किसी की निंदा नहीं होगी।
2. असत्य बोलने से बचेंगे।
3. किसी से वैर नहीं होगा।
4. किसी से क्षमा नहीं माँगनी पड़ेगी।
5. बाद में आपको पछताना नहीं पड़ेगा।
6. समय का दुरूपयोग नहीं होगा।
7. किसी कार्य का बंधन नहीं रहेगा।
8. अपने वास्तविक ज्ञान की रक्षा होगी। अपना अज्ञान मिटेगा।
9. अंतःकरण की शाँति भंग नहीं होगी।

यह है वो 4 गुण जिनको अपनाने से मिलती हैं लम्बी आयु

यह है वो 4 गुण जिनको अपनाने से मिलती हैं लम्बी आयु

1. हमेशा सच बोलना
झूठ बोलना कई लोगों के स्वभाव में होता है। झूठ बोलकर वे पल भर के लिए तो मुसीबत से बच जाते हैं, लेकिन आगे चल कर उन्हें उसका परिणाम झेलना ही पड़ता है। झूठ बोलने से न की सिर्फ मनुष्य की छवि खराब होती है, बल्कि उसके स्वास्थय पर भी बुरा असर पड़ता है। वो अक्सर अपना झूठ पकड़े जाने के डर से चिंता में रहता है, बेचैन रहता है। यही चिंता उसकी सेहत पर लगातार बुरा असर डालती है। लम्बी उम्र के लिए असत्य बोलने से बचना चाहिए।
2. क्रोध न करना
क्रोध को मनुष्य की सबसे बड़ा दुश्मन कहा जाता है। बेवजह या अत्यधिक गुस्सा करने से मनुष्य के मन- मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है। जो उसकी आयु को कम करता जाता है। गुस्सा हमारे स्वभाव को धीरे-धीरे हिंसक बना देता है। क्रोध न करने वाले या शांत स्वभाव वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसे निश्चित ही लंबी उम्र तक जीता है।
3. हिंसा न करना
अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। मार-पीट, लड़ाई-झगड़े या हिंसा करने वाला व्यक्ति दूसरों को तो कष्ट पहुंचाता ही है, साथ ही खुद का भी नुकसान करता है। जो व्यक्ति दूसरों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है और उनकी रक्षा करता है, उन पर भगवान हमेशा प्रसन्न रहते है। इस गुण का पालन करने वाले की आयु निश्चित ही लम्बी होती है। हिंसा भी तीन तरह की मानी गई है, मन से, वचन से और कर्म से। मन से हिंसा का मतलब है किसी के बारे में लगातार बुरा सोचना। वचन से हिंसा का मतलब है कि किसी के बारे में बुरा बोलना, भ्रामक बातें फैलाना तथा कर्म से हिंसा मतलब शारीरिक रुप से कष्ट पहुंचाना।
4. छल-कपट न करना
जो व्यक्ति हमेशा सदाचार का पालन करता है, छल-कपट जैसी भावनाएं जिसके मन में नहीं रहती, उसका मन हमेशा प्रसन्न रहता है। मनुष्य को छल-कपट जैसे भावों से दूर रह कर, अपना मन देव भक्ति और पूजा में लगाना चाहिए। ऐसा करने से उसका मन शांत रहता है। शांत मन ही स्वस्थ शरीर की निशानी होती है। इस गुण को पालन करने पर मनुष्य अधिक समय तक जीवित रहता है।

28.9.15

वनस्पति प्रयोग से धन-दौलत चूमेगी आपके कदम और खुल जाएंगे किस्मत के दरवाजे

नारद संहिता, गरुड़ पुराण, शुक्रनीति सार में लिखा है कि रत्न, सुंदरता एवं वैभव के प्रतीक तो है ही, किन्तु ये ग्रह दोषों का भी हरण करते हैं। कौन-सा रत्न किस ग्रह को प्रसन्न कर उसका दोष दूर करता है इस संबंध में रत्नमाला नामक ग्रंथ में कहा गया है कि सूर्य का रत्न माणिक्य, चंद्रमा का मोती, मंगल का मूंगा, बुध का पन्ना, बृहस्पति का पुखराज, शुक्र का हीरा, शनि का निर्मल नीलम, राहु का गोमेद और केतु का रत्न लहसुनिया है।
सर्वसाधारण के लिए रत्नों को धारण करना सुलभ एवं सुगम नहीं है तब इनके उपरत्न या वनस्पति आदि को यथाशक्ति धारण कर कष्ट बाधा दूर की जा सकती है। सूर्यादि ग्रहों के लिए निम्नानुसार वनस्पति का प्रयोग करें। वनस्पति प्रयोग से धन दौलत चूमेगी आपके कदम और खुल जाएंगे किस्मत के दरवाजे
* सूर्य के लिए बेल की जड़ सूत के धागे में दाहिनी भुजा में धारण करें।
* चंद्रमा के लिए सोमवार के दिन खिरनी की जड़ सूती कपड़े में बांध कर गले में अथवा भुजा पर धारण करें।
* मंगल के लिए मंगलवार को सोने के ताबीज में अनंतमूल की जड़ रखकर लाल रंग के सूती धागे में बांधकर पहनें।
* बुध के लिए बुधवार को विधारा की जड़ हरे रंग के धागे में बांधकर धारण करें।
* बृहस्पति के लिए केले की जड़ का टुकड़ा सोने के यंत्र में रखकर पीले धागे से वीरवार को धारण करें।
* शुक्र के लिए सरपंका की जड़ चांदी के ताबीज में रखकर सफेद धागे से बांधकर शुक्रवार को धारण करें।
* शनि के लिए शनिवार को विदुआ की जड़ रांगे या लोहे के ताबीज में काले डोरे में बांध कर धारण करें।
* राहु के लिए बुधवार को चंदन की जड़ को रांगे के ताबीज में नीले रंग के धागे में बांधकर धारण करें।
* केतु के लिए चांदी के यंत्र में असगंध की जड़ वीरवार को नीले रंग के धागे में धारण करें।

इस तरह हनुमान जी को अपने घर बुलाएं और होने लगेंगे अनोखे चमत्कार

इस तरह हनुमान जी को अपने घर बुलाएं और होने लगेंगे अनोखे चमत्कार

हनुमान जी के किसी भी चित्र में देखें तो पाएंगे की उनके हाथ में सदा गद्दा और झण्डा रहता है। झण्डे पर लिखा होता है श्रीराम। महाभारत युद्ध के समय हनुमान जी अर्जुन के रथ के झण्डे पर विराजित थे। उन्होंने अजुर्न की पग-पग पर रक्षा करी और उसे विजय दिलवाने में उनका बहुत बड़ा योगदान था। आईए जानें कैसे।
शास्त्रनुसार कौरव-पांडव युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार अर्जुन के रथ पर स्वयं पवनपुत्र विराजित हुए। जैसे ही महाभारत युद्ध समाप्त हुआ तभी भीम और दुर्योधन के बीच गद्दा युद्ध प्रारंभ हुआ। गद्दा युद्ध में नियमों का उल्लंघन कर भीम ने दुर्योधन को हरा दिया। दुर्योधन को मृतवस्था में छोड़कर सभी पांडव के शिविर में लौट आए।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को संबोधित करते हुए कहा। हे पार्थ! सर्वप्रथम तुम अपने गांडीव धनुष और अक्षय तरकस को लेकर रथ से उतर जाओ। अर्जुन ने श्रीकृष्ण के निर्देश का पालन किया। इसके बाद भगवान कृष्ण भी रथ से उतर गए।
भगवान कृष्ण के रथ से उतरते ही अर्जुन के रथ पर धव्ज पर विराजे हनुमानजी भी रथ को छोड़कर उड़ गए। तभी अर्जुन का रथ जल कर भस्म हो गया। इस दृश्य को देख अर्जुन ने भगवान कृष्ण से रथ के जलने का कारण पूछा।
तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को संबोधित करते हुए कहा। हे पार्थ। तुम्हारा रथ तो अनेक दिव्यास्त्रों के प्रहार से पहले ही जल चुका था, मात्र मेरे तथा पवनपुत्र हनुमानजी के तुम्हारे रथ पर विराजे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। हे अर्जुन! जब तुम्हारा युद्ध का कर्तव्य पूरा हो गया, तभी मैंने व हनुमानजी से इस रथ को त्याग दिया। अतः तुम्हारा रथ अभी भस्म हुआ है।
आप भी लाल रंग के तिकोने झण्डे पर श्रीराम लिखकर घर की छत पर लगाएं। इस तरह हनुमान जी को अपने घर बुलाएं और फिर देखें होंगे कैसे अनोखे चमत्कार। जिस तरह हनुमान जी ने अर्जुन के रथ की रक्षा करी उसी तरह वह आपके भी घर की रक्षा करेंगे।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से ध्वजा अर्थात पताका अर्थात त्रिकोण झण्डा केतू ग्रह को संबोधित करता है। शास्त्रों में केतू ग्रह को मोक्ष का ग्रह बताया गया है। काल पुरुष सिधान्त के अनुसार केतू का स्थान आकाश में हवा में लहरते हुए स्थित होता है। केतू का स्वरूप त्रिकोण है। लाल रंग की त्रिकोण पताका व्यक्ति की देह की रक्षा करता है। लाल रंग की त्रिकोण पताका के कुछ विशेष उपाय इस प्रकार हैं।
* कोर्ट-कचहरी के पचड़ों में फंसे हों तो घर की छत पर पश्चिम दिशा में लाल त्रिकोण पताका लगाएं।
* प्राणों पर किसी भी तरह का संकट मंडरा रहा हो तो हनुमान मंदिर के कलश पर लाल त्रिकोण पताका लगाएं।
* परिक्षा में अच्छे अंक पाने की कामना पूर्ण करना चाहते हो तो मंगलवार के दिन हनुमान जी को तिकोना झण्डा चढ़ाएं।
* अपना घर बनाने की इच्छा पूर्ण न हो पा रही हो या संपत्ति से संबंधित कोई भी कार्य हो तो मंगलवार को लाल रंग के तिकोने झण्डे पर श्रीराम लिखकर हनुमान मंदिर में चढ़ाएं।

14.9.15

शैतानी शक्तियों का नाशक - हीरा

शैतानी शक्तियों का नाशक - हीरा
प्राचीन समय से ही हीरा राजा-महाराजाओं की शान रहा है। आज के समय में हीरा हर घर, हर वर्ग को आकर्षित कर रहा है। महिलाओं के श्रंगार में हीरे जड़ित आभूषणों से तो उनका सौंदर्य और निखरता है। सभी रत्नों में हीरा सबसे कठोर एवं चमकीला है। यह एक स्वतंत्र खनिज है व घनाकार स्वरूप में हमें प्राप्त होता है। यह अच्छी पारदर्शिता के साथ सभी रंगों में आता है।
हीरे का मूल्य इसके भार, शुद्धता, रंग तथा पारदर्शिता को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। इसकी आंतरिक शुद्धता एवं रंग की श्रेणी का एक पैमाना होता है। वैसे तो हीरे के बहुत से कट होते हैं, किंतु गोल डबल कट सबसे ज्यादा चलन में है। इस कट में ५७ फलक होते हैं। इस कारण इसकी दीप्ति आकर्षक एवं सम्मोहित करने वाली होती है। हीरा शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र सभी ग्रहों में सबसे चमकीला है।
मूलांक ६ वाले जातक भी इस रत्न को धारण कर सकते हैं। हीरा पहनने से शैतानी शक्तियां नष्ट होती हैं। यह जातक के विचारों में दृढ़ता लाता है और उसके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाता है। इससे दांपत्य जीवन में मधुरता आती है। हीरे का रासायनिक गठन कार्बन है। इसे इंग्लिश में डायमंड कहते हैं।

शनिदेव

शनिदेव

शनिदेव को मृत्युलोक का धर्मराज कहा जाता है। पृथ्वी पर होने वाले सत्कर्मो और दुष्कर्मो का लेखा-जोखा रखकर तत्काल दंडित करने के कारण लोग इनसे भयभीत रहते हैं। जन्मकुंडली में वृष और तुला लग्न वालों के लिए शनिदेव परम योगकारक होते हैं, जबकि मकर और कुंभ इनकी अपनी राशि है। तुला राशि पर उच्च और मेष राशि पर इन्हें नीच की संज्ञा प्राप्त है।
कर्क और सिंह वालों के लिए ये मारक होते हैं। मारक अथवा मारकेश का ज्योतिषीय अर्थ है - मरणतुल्य कष्ट देने वाला। अन्य ग्रह यदि मारकेश हैं तो वे अशुभ फल अवश्य देते हैं, किंतु शनि के साथ ऐसा नहीं है। पृथ्वीलोक के दंडाधिकारी होने के कारण शनिदेव अपने भाई यमदेव की ही तरह मर्यादा में बंधे हैं। इस कारण ये चाहे मारक हों या योगकारक, कर्मानुसार ही फल देते हैं। पुराणों में कहा गया है कि शनिदेव के कुप्रभावों से बचने के लिए असहाय लोगों की मदद करें, अभिवादनशील रहें और श्रद्धा-विश्वास के साथ दान-पुण्य करें।
शनि वायु तत्वप्रधान और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। ये आंधी-तूफान, महामारी, अग्निजनित दुर्घटनाओं तथा तमाम प्राकृतिक आपदाओं के स्वामी होते हैं। इनका पृथ्वी के नजदीक आना कुछ इसी तरह की आशंका पैदा करता है, किंतु ये वर्तमान में अग्नितत्व की राशि सिंह में चल रहे हैं, जो इनके पिता सूर्य की राशि है। इस कारण इनके प्रभाव में कोई क्रूरता या परिवर्तन नहीं आएगा। कतिपय ज्योतिषी अपने अध्ययन के आधार पर शनि का नाम लेकर लोगों को डरा रहे हैं। ये लोग विशेषत: सिंह राशि के लोगों को डरा रहे हैं, लेकिन यह सही नहीं है- स्थान हानिकरों जीवो स्थान वृद्धि करौ शनि।
इस सूत्र के अनुसार शनि जिस स्थान (सिंह) पर बैठते हैं, वहां की वृद्धि ही करते हैं। अत: सिंह राशि वालों को शनि से डरने की जरूरत नहीं है। अच्छे कर्म करते चलें। शनि देव के आशीर्वाद से कामयाबी आपके कदम चूमेगी। सिंह राशि ही नहीं, किसी भी राशि के जातक को शनिदेव का कोपभाजन नहीं बनना पड़ेगा।