28.1.16

शनिदेव ने नहीं मानी रावण की बात

शास्त्रों से- जब शनिदेव ने नहीं मानी रावण की बात

शनि बहुत धीरे चलने वाला ग्रह है। इसीलिए शनि एक राशि में करीब ढाई वर्ष रहता है। धीरे-धीरे यानी श्नै: श्नै: चलने के कारण शनि को श्नैश्चर भी कहा जाता है। शनिदेव धीरे क्यों चलते हैं, इस संबंध में शास्त्रों में एक प्रसंग बताया गया है। ये प्रसंग रावण और शनिदेव से जुड़ा है।
प्रसंग के अनुसार जब मेघनाद का जन्म होने वाला था तब रावण चाहता था कि उसका पुत्र अजेय हो, जिसे कोई भी देवी-देवता हरा न सके, वह दीर्घायु हो, उसका पुत्र तेजस्वी, पराक्रमी, कुशल यौद्धा और ज्ञानी हो। रावण प्रकाण्ड पंडित और ज्योतिष का जानकार भी था, इसी वजह से उसने मेघनाद के जन्म के समय सभी नौ ग्रहों और नक्षत्रों को ऐसी स्थिति में बने रहने का आदेश दिया, जिससे उसके पुत्र में वह सभी गुण आ जाए, जो वह चाहता है।
उस समय पूरी सृष्टि में रावण का प्रभाव इतना अधिक था कि सभी ग्रह-नक्षत्र, देवी-देवता उससे डरते थे। इसी वजह से मेघनाद के जन्म के समय सभी ग्रह वैसी ही राशियों में स्थित हो गए, जैसा रावण चाहता था। रावण ये बात जानता था कि शनि देव न्यायाधीश है और आयु के देवता हैं। शनि इतनी आसानी से रावण की बात नहीं मानेंगे। इसीलिए शनि को भी जबरदस्ती रावण ने ऐसी स्थिति में रखा, जिससे मेघनाद की आयु वृद्धि हो सके।
आगे की स्लाइड में जानिए शेष प्रसंग...
तस्वीरों का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।
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मेघनाद के जन्म के समय शनि ने तिरछी कर ली थीं नजरें
शनि ने मेघनाद के जन्म के समय अपनी नजरें तिरछी कर ली थीं। तिरछी नजरों के कारण ही मेघनाद अल्पायु हो गया। जब रावण को ये बात मालूम हुई तो वह शनि पर अत्यंत क्रोधित हो गया। क्रोध में रावण ने शनिदेव के पैरों पर गदा से प्रहार कर दिया। इसी प्रहार की वजह से शनिदेव लंगड़े हो गए।
शनि की तिरछी नजरों के कारण ही मेघनाद की मृत्यु अल्पायु में लक्ष्मण के हाथों हो गई। मेघनाद तेजस्वी और पराक्रमी था, उसमें वे सभी गुण थे, जो रावण अपने पुत्र में चाहता था। सिर्फ शनि की स्थिति बदलने से उसकी आयु कम हो गई।
लंबी उम्र के लिए करना चाहिए शनि की पूजा
ज्योतिष के अनुसार शनिदेव आयु के कारक देवता है। इसीलिए लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना पूरी करने के लिए शनि की विशेष हर शनिवार को करनी चाहिए।

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