31.1.15

आपकी संतान पूर्व जन्म


आपकी संतान पूर्व जन्म का बदला लेने भी आती है.... पढ़ें
रोचक आलेख
पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में रिश्ते मिलते हैं। संतान के
रूप में हमारा कोई पूर्व जन्म का 'संबंधी' ही आकर जन्म लेता है
जिसे शास्त्रों में 4 प्रकार का बताया गया है-
1. ऋणानुबंध : पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण
लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट
किया हो तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और
आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा,
जब तक कि उसका हिसाब पूरा न हो।
2. शत्रु पुत्र : पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिए
आपके घर में संतान बनकर आएगा और बड़ा होने पर माता-
पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें
सारी जिंदगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा।
हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें
दुःखी रखकर खुश होगा।
3. उदासीन पुत्र : इस प्रकार की संतान न तो माता-
पिता की सेवा करती है और न ही कोई सुख देती है और
उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है। विवाह होने पर
यह माता-पिता से अलग हो जाती है। यह पूर्व जन्म
का पड़ोसी हो सकता है।
4. सेवक पुत्र : पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है
तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए,
आपकी सेवा करने के लिए पुत्र बनकर आता है। अगर आपने
किसी गाय की निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र
या पुत्री बनकर आ सकती है।
यदि आपने गाय को स्वार्थवश पालकर उसके दूध देना बंद करने के
पश्चात उसे घर से निकाल दिया हो तो वह ऋणानुबंध पुत्र
या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि आपने किसी निरपराध जीव
को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आएगा इसलिए
जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।
प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करते हैं, उसे वह अगले जन्म में
100 गुना करके देती है। यदि आपने किसी को 1 रुपया दिया है
तो समझो आपके खाते में 100 रुपए जमा हो गए हैं। यदि आपने
किसी का 1 रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से
100 रुपए निकल गए।


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बाबा बालकनाथ जी



मूल मन्त्र --"..ॐ नमः सिद्धाय.. "
बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में
पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म
सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान
में कल युग, और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसे
“सत युग” में “ स्कन्द ”, “ त्रेता युग” में “ कौल” और “ द्वापर युग” में
“महाकौल” के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने
गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और
तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बडे भक्त
कहलाए। द्वापर युग में, ”महाकौल” जिस समय “कैलाश पर्वत” जा रहे
थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने
बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध
स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान
शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे
तपस्या करने की सलाह दी, और माता पार्वती,
( जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं )
से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल
वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए।
बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने
बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे
जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक
उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने
का भी आशिर्वाद दिया।


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बाबा बालकनाथ जी की कहानी



बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में
पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म
सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान
में कल युग, और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया जैसे
“सत युग” में “ स्कन्द ”, “ त्रेता युग” में “ कौल” और “ द्वापर युग” में
“महाकौल” के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने
गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और
तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बडे भक्त
कहलाए। द्वापर युग में, ”महाकौल” जिस समय “कैलाश पर्वत” जा रहे
थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने
बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध
स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान
शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे
तपस्या करने की सलाह दी, और माता पार्वती,
( जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं )
से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा। बाबाजी ने बिलकुल
वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए।
॥ जगत गुरु श्री गुरु दत्तात्रय भगवान की जय ॥
॥ जय श्री सिद्ध बाबा बालक नाथ जी ॥


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अगर हनुमान भक्त तो ज़रूर करें 7 उपाये


अगर हनुमान भक्त तो ज़रूर करें 7 उपाये
यदि आप हनुमानजी के भक्त हैं तो आपके लिए मंगलवार और
शनिवार बहुत ही विशेष दिन हैं। इन दोनों दिनों में की गई
हनुमान पूजा खास फल देने वाली होती है। हनुमानजी को खुश
करने के लिए 7 चमत्कारी उपाय हैं, जो कि मंगलवार और
शनिवार को करने चाहिए।
प्रात: सुबह पीपल के कुछ पत्ते लें और इन पत्तों पर चंदन या कुमकुम
से श्रीराम नाम लिखें। इसके बाद इन पत्तों की एक
माला बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें। किसी भी पीपल
के पेड़ को जल चढ़ाएं और सात बार परिक्रमा करें। इसके बाद
पीपल के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।
अगर आपको कड़ी मेहनत करने के बावजूद भी किसी भी कार्य में
असफलता मिल रही है तो किसी भी हनुमान मंदिर में नींबू और
4 लौंग लेकर जाएं। इसके बाद मंदिर में हनुमानजी के सामने
ही नींबू के ऊपर चारों लौंग लगा दें। फिर हनुमान
चालीसा का पाठ करें या हनुमानजी के मंत्रों का जाप करें। वह
नींबू अपने साथ रखकर कार्य करें। मेहनत के साथ ही कार्य में
सफलता भी मिल जाएंगी।
यदि आपके कार्यों में बार-बार अड़चनें आ रही हैं या धन
प्राप्ति में देरी हो रही है या किसी की बुरी नजर बार-बार
लगती है तो किसी भी सिद्ध हनुमान मंदिर में एक नारियल
लेकर जाएं। नारियल को अपने सिर पर सात बार वार लें। इसके
पश्चात हनुमान चालीसा का जाप करते रहें। सिर पर वारने के
बाद नारियल हनुमानजी के सामने फोड़ दें। इस उपाय से
आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी।
यदि आप मालामाल होना चाहते हैं तो रात में
किसी भी हनुमान मंदिर जाएं और वहां मूर्ति के सामने
चौमुखा दीपक लगाएं। इसके बाद हनुमान चालीसा का पाठ
करें। ऐसा प्रतिदिन करेंगे तो बहुत ही जल्द बड़ी-
बड़ी परेशानियां भी आसानी से दूर हो जाएंगी।
यदि आपके बनते हुए काम बिगड़ जाते हैं तो शनिवार को यह
उपाय करें। आप सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें। स्नान आदि करने के बाद
घर से एक नींबू अपने साथ लें और किसी चौराहे पर जाएं। नींबू के
दो बराबर टुकड़ें करके एक टुकड़े को अपने से आगे की ओर फेंकें और
दूसरे टुकड़े को पीछे की ओर। इस समय आपका मुख दक्षिण
दिशा की ओर ज़रूर होना चाहिए।
हनुमानजी को सिंदूर और तेल अर्पित करें।
जो भी व्यक्ति हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करता है
उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।
हनुमानजी के मंदिर में एक नारियल पर स्वस्तिक बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
अपनी श्रद्धा अनुसार हनुमान मंदिर में बजरंग
बली का चोला चढ़वाएं। ऐसा करने पर
आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।


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योगिनी एकादशी: मात्र एक दिन में करें समूल पापों का विनास

योगिनी एकादशी: मात्र एक दिन में करें समूल पापों का विनास
12/जून /2015
एकादशी तिथि को श्री हरिवासर तिथि भी कहा जाता है क्योंकि यह तिथि श्री हरि को अत्यंत प्रिय है इसलिए हरिवासर या एकादशी व्रत के दिन उपवास करना चाहिए तथा उपवास के साथ भगवान श्री कृष्ण के नाम संर्कीतन का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना अत्यधिक लाभ प्रद है।

उपवास शब्द दो अक्षरों के जोड़ से बना है उप और वास उप का अर्थ है नज़दीक और वास का अर्थ है भगवान के नज़दीक जैसे श्रीकृष्ण के नाम, गुण, लीला, परिकर,धाम का संकीर्तन करते हुए रहना। सभी इन्द्रियों पर संयम रखते हुए उपवास करना। अन्न आदि का एकादशी के दिन त्याग करके कन्द, मूल ,फल इत्यादि का भगवान को निवेदन करने के उपरांत प्रसाद ग्रहण करना।

व्रहा्वैवर्त पुराण में युधिष्ठर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी के महात्म को कहने का निवेदन किया। श्री कृष्ण ने कहा," समस्त पापों का नाश करने वाली यह एकादशी तिथि महापापों का नाश करने वाली है। यह संसार बंधन से मुक्ति देने वाली है। 

योगिनी एकादशी की कथा
अलकापुरी के स्वामी कुबेर शिव के भक्त थे। कुबेर नित्य ही शिव की पूजा करते । हेम नाम का यक्ष माली उनकी पूजा के लिए मानसरोवर से कमलों के फूल हर रोज़ लेकर आता था। हेम माली की रूपवती पत्नी का नाम विशालाक्षी था जिस पर हेम बहुत अासक्त था। 

एक दिन मानसरोवर से फूलों को लाकर हेम घर पर रूक गया तथा अपनी सुन्दर पत्नी से मोहयुक्त होकर रमण करतें-करतें उसे समय का पता ही नहीं चला और वे कुबेर को फूल देने नहींं जा सका तथा दोपहर के 2 बजे का समय कुबेर को माली की बाट जोहते हो गया। परिणामस्वरूप उसके द्वारा शिव जी की पूजा न हो सकी।

अति विलम्ब हो जाने के कारण कुबेर क्रोधित होकर बोले अरे यक्षों," दुष्ट हेम माली आज क्यों नहीं अाया?" 

उसका पता लगाओ। 

दूत ने आकर कहा कि," महाराज हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी के साथ प्रेम पूर्वक घर में विहार कर रहा है।"

यह सुनकर कुबेर बहुत क्रोघित हुए और सैनिकों को हेम माली को पकड़कर लाने का आदेश दिया। हेम माली देर तक फूल न पहुंचाए जाने के कारण बड़ा ही लज्जित और भयभीत हुआ। स्वयं को दोषी मानते हुए कुबेर के पास आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर कुबेर क्रोध से लाल आंखो सहित उसे  डांटते हुए बोले," अरे! पापिष्ठ, दुराचारी, तू मेरे परम अराध्य शंकर जी की अवज्ञा करके विषय भोग में लगा रहा। मैं तुझे श्राप देता हूं कि तुझे सफेद कोढ़ हो जाए और तेरी प्रियतमा पत्नी से सदा के लिए वियुक्त हो कर अधम स्थान पर जाकर रहे।"

कुबेर के अभिशाप से हेम माली अलकापुरी से भ्रष्ट होकर पृथ्वी पर आकर सफेद कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर बड़ा दुख पाने लगा। भूख-प्यास से व्याकुल एवं शारीरिक और मानसिक रूप से दुखी होकर समाज को छोड़कर वह जंगल में चला गया। न उसको दिन को चैन था न रात को नींद आती। सर्दी-गर्मी से वह बड़ा कष्ट भोगने लगा परन्तु शिव जी की भक्ति के कारण उसकी स्मृति बनी रही। अपने पापों के फल भोगते हुए भी अपने पूर्व कर्मी की याद को भुला नहीं पाया। वह घुमता हुअा हिमालय पर्वत पर जा पहुंचा। 

वहां उसे महातपोनिषसमूल पापों का विनाश करने वाली हरिवासर तिथि योगिनी एकादशी को महातपोनिष्ठ मुनि श्रेष्ठ सात कल्प की उम्र वाले मार्कण्डय ऋषि  के दर्शन हुए। शरीर पर कोढ़ होने के कारण दूर से ऋषि को उसने प्रणाम किया। परम दयालु मुनि ने उसे समीप बुलाया और पूछा," तुम्हारी कुष्ठ दशा का क्या कारण है? तुमने ऐसा कौन सा निन्दित कर्म किया जिस कारण तुम्हें ऐसी बुरी बीमारी ने पकड़ा?"

मार्कण्डेय ऋषि के पूछने पर उस यक्ष माली ने कहा," हे मुनिवर! हे दयालु! मैं यक्षराज कुबेर का सेवक हूं। शिव जी की पूजा के लिए मैं मान सरोवर से पुष्प चयन करके अपने मालिक कुबेर को नित्य नियमानुसार लाकर देता था। एक दिन कामासक्त होकर अपनी पत्नी के साथ रमण करता रहा समय का मुझे ध्यान न रहा। परिणामस्वरूप क्रोधित होकर कुबेर ने मुझे अभिशाप दे दिया जिस कारण मैं अपनी पत्नी से बिछुड़कर भयंकर कुष्ठ रोग को प्राप्त हुआ।"

आज न जाने मेरे कौन से पुण्य फल उदय हुए कि आपके दर्शन हो गए। हे मुनिराज! मुझे मंगल प्राप्ति का उपाय बतलाएं।

मुनिराज ने कहा," हे यक्ष! तुमने जो कहा वह सत्य कहा इसलिए मैं तुम्हें परम कल्याणकारी व्रत बतलाता हूं। तुम आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष वाली योगिनी एकादशी का व्रत करो उस व्रत के पुण्य प्रताप से तुम अवश्य ही कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाओगे।"

मुनि के यह वचन सुनकर उस यक्ष ने उनको दण्डवत प्रणाम किया तथा उनके उपदेश अनुसार बड़ी श्रद्धा से आषाढ़ कृष्णा योगिनी एकादशी का व्रत पालन किया। व्रत के प्रभाव से उसे पहले जैसा सुन्दर शरीर प्राप्त हुआ तथा वह उत्तम सुख भोगने लगा।

परमहंस ऊं विष्णुपाद 108 त्रिदण्डीस्वामी श्री श्रीमद भक्ति वल्लभ तीर्थ गोस्वामी जी महाराज जी अपने प्रवचनों में कहते हैं कि," एकादशी व्रत आदि भक्ति साधनों का असली उदेश्य राज्य, सुंदर स्त्री या सुंदर पति अथवा आज्ञाकारी पुत्र प्राप्त करना नहीं है। इसका असली उद्देश्य तो भगवान श्री हरि की अहैतुकी भक्ति प्राप्त करना है जोकि
नित्य है व जीव का सर्वोतम अभीष्ट है। हरिनाम करके या एकादशी व्रत करके भगवान से उसके बदले में दुनियावी वस्तुएं मांगना या मांगने की इच्छा करना बुद्धिमानी नहीं है क्योंकि ये हमेशा आपके पास रह भी नहीं पाएगी। भगवान से भगवान की सेवा मांगने से जीव का जीवन व उसकी एकादशी व्रत इत्यादि करने की साधना परिपूर्ण रूप में सफल होती है. Blogaway
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भाव- बचपन में शारिरीक स्थिति

1.प्रथम भाव- बचपन में शारिरीक
स्थिति की जानकारी देता है , किन्तु बढ़ती उम्र के
साथसाथ इससे शरीर के साथसाथ आत्मविश्वास , अन्य व्यक्तिगत गुण और अनुभव भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
2.द्वितीय भाव- से बचपन में कौटुम्बिक
स्थिति को देखा जाता है , किन्तु बढ़ती उम्र के साथ
साथ इससे धन ,कोष , साख , परिवारआदि की स्थिति भी।
3.तृतीय भाव- बचपन में भाई , बहन से अच्छे या बुरे संबंध का बोध कराता है , पर बढ़ती उम्र के साथ यह पौरूष ,पराक्रम , अनुयायी कार्यकर्त्ताओं आदि की भी।
4.चतुर्थ भाव- बचपन में माता या माता के समान किसी गोद का अहसास देता है , जबकि उम्र बढ़ने के साथ साथ हर प्रकार की संपत्ति और स्थायित्व
आदि की मजबूती इसी भाव से देखी जाती है।
5.पंचम भाव- बालक के तर्कवितर्क शक्ति को बतलाता है ,जबकि उम्र बढ़ने के साथसाथ शैक्षणिक और व्यावसायिक योग्यता और संतान की स्थिति भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
6.षष्ठ भाव- किसी बच्चे के रोगप्रतिरोधक
स्थिति को बतलाता है , जबकि बढ़ती उम्र के साथ रोग
के साथ साथ ऋण और शत्रु से लड़ने की क्षमता या प्रभाव
की स्थिति भी इसी भाव से देखे जाते हैं।
7सप्तम भाव- एक बच्चे के लिए उसके
दोस्तों को परिभाषित करता है , पर बड़े होने के बाद
व्यवसाय में साथ देने वाले भागीदार और विवाह के
पश्चात
पति या पत्नी की स्थिति की जानकारी इसी भाव से
पायी जा सकती है।
8.अष्टम भाव- से बालक के जीवन जीने के स्तर
का पता चलता है , परंतु बड़े होने के बाद दिनचर्या और जीवन जीने के ढंग का पता भी इसी भाव से चलता है।
9.नवम् भाव- से किसी बच्चे का भाग्य
देखा जाता है ,जबकि बड़े होने के बाद भाग्य के साथ
साथ स्वभाव , गुण , धर्म और संयोग भी।
10.दशम् भाव -से बच्चे का पिता पक्ष
देखा जाता है ,जबकि बड़े होने के बाद कर्म, विचार, पद
और प्रतिषठा का माहौल भी।
11.एकादश भाव- बच्चे के लिए सामान्य लाभ का द्योतक
है , जबकि बड़े के लिए अभीष्ट और मंजिल का।
12.-द्वादश भाव - किसी बालक के लिए सामान्य प्रकार
के खर्च का संकेत देता है , उम्र में वृद्धि के साथ साथ इससे
क्रयशक्ति , हानि तथा बाह्य व्यक्ति या स्थान से संबंध
भी देखा जाता है।

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भाव से विचारणीय विषय



प्रथम भाव : प्रथम भाव से विचारणीय विषय हैं - जन्म, सिर,
शरीर, अंग, आयु, रंग-रूप, कद, जाति आदि।
द्वितीय भाव: दूसरे भाव से विचारणीय विषय हैं - रुपया पैसा,
धन, नेत्र, मुख, वाणी, आर्थिक स्थिति, कुटुंब, भोजन, जिह्य,
दांत, मृत्यु, नाक आदि।
तृतीय भाव : तृतीय भाव के अंतर्गत आने वाले विषय हैं - स्वयं से
छोटे सहोदर, साहस, डर, कान, शक्ति, मानसिक संतुलन आदि।
चतुर्थ भाव : इस भाव के अंतर्गत प्रमुख विषय - सुख, विद्या,
वाहन, ह्दय, संपत्ति, गृह, माता, संबंधी गण,पशुधन और इमारतें।
पंचव भाव : पंचम भाव के विचारणीय विषय हैं - संतान, संतान
सुख, बुद्धि कुशाग्रता, प्रशंसा योग्य कार्य, दान, मनोरंजन, जुआ
आदि।
षष्ठ भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - रोग, शारीरिक
वक्रता, शत्रु कष्ट, चिंता, चोट, मुकदमेबाजी, मामा, अवसाद
आदि।
सप्तम भाव : विवाह, पत्*नी, यौन सुख, यात्रा, मृत्यु, पार्टनर
आदि विचारणीय विषय सप्तम भाव से संबंधित हैं।
अष्टम भाव : आयु, दुर्भाग्य, पापकर्म, कर्ज, शत्रुता, अकाल मृत्यु,
कठिनाइयां, सन्ताप और पिछले जन्म के कर्मों के मुताबिक सुख
व दुख, परलोक गमन आदि विचारणीय विषय आठवें भाव से
संबंधित हैं।
नवम भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - पिता, भाग्य, गुरु,
प्रशंसा, योग्य कार्य, धर्म, दानशीलता,
पूर्वजन्मों का संचि पुण्य।
दशम भाव : दशम भाव से विचारणीय विषय हैं - उदरपालन,
व्यवसाय, व्यापार, प्रतिष्ठा, श्रेणी, पद, प्रसिद्धि, अधिकार,
प्रभुत्व, पैतृक व्यवसाय।
एकादश भाव : इस भाव से विचारणीय विषय हैं - लाभ, ज्येष्ठ
भ्राता, मुनाफा, आभूषण, अभिलाषा पूर्ति, धन
संपत्ति की प्राप्ति, व्यापार में लाभ आदि।
द्वादश भाव : इस भाव से संबंधित विचारणीय विषय हैं - व्यय,
यातना, मोक्ष, दरिद्रता, शत्रुता के कार्य, दान, चोरी से
हानि, बंधन, चोरों से संबंध, बायीं आंख, शय्यासुख, पैर आदि।


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28.1.15

२७नक्षत्रों के पेड़


२७नक्षत्रों के पेड़
इसके अनुसार २७नक्षत्रों अश्र्िवनी, भरणी, कृत्तिका,
रोहिणी, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा,
पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती,
विशाख, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ ा, उत्तराषाढ ा,
श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवति
और अभिजित का जिक्र विभिन्न वेद, पुराण व उपनिषद में
मिलते है।
१.अश्र्िवनीः-
अश्र्िवनी नक्षत्र के देवता केतु
को माना जाता है, जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से आंवला
के पेड़ को अश्र्िवनी नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और अश्र्िवनी नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग आंवला के पेड की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में आंवला के पेड को लगाते
है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में अश्र्िवनी नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखा गया है।
२.भरणीः-
भरणी नक्षत्र के देवता शुक्र
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से युग्म वृक्ष
के पेड को भरणी नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और भरणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले
लोग युग्म वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग
अपने घर के खाली हिस्से में युग्म वृक्ष के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में भरणी नक्षत्र को एक विशेष
रुप में दिखाया गया है।
३. कृत्तिकाः-
कृत्तिका नक्षत्र के
देवता रवि को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
गुलर के पेड को कृत्तिका नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है
और कृत्तिका नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग गुलर के पेड पूजा
करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले
लोग अपने घर के खाली हिस्से में गुलर के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में कृत्तिका नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
४. रोहिणीः-
रोहिणी नक्षत्र के देवता चंद्र
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से जामुन के
पेड को रोहिणी नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग जामुन के पेड की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में जामुन के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में रोहिणी नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
५.मृगशिराः-
मृगशिरा नक्षत्र के देवता मंगल
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से खैर के पेड़
को मृगशिरा नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और मृगशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग खैर
वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर
के खाली हिस्से में खैर के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में मृगशिरा नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
६.आद्राः-
आद्रा नक्षत्र के देवता राहु
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से पाकड के
पेड को आद्रा नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और आद्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग पाकड
वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर
के खाली हिस्से में पाकड के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में पाकड नक्षत्र को एक विशेष
रुप में दिखाया गया है।
७.पुनर्वसुः-
पुनर्वसु नक्षत्र के
देवता वृहस्पति को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक
ष्टिकोण से बांस के पेड को पुनर्वसु नक्षत्र का
प्रतीक माना जाता है और
पुनर्वसु नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बांस के वृक्ष की पूजा करते
है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में
बांस के पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में
पुनर्वसु नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
८.पूष्यः-
पुष्य नक्षत्र के
देवता शनि को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
पीपल के पेड को पूष्य नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और पुष्य नक्षत्र में
जन्म लेने वाले लोग पीपल वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में
जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में पीपल वृक्ष के पेड
को भी लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में पूष्य
नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
९.अश्लेशाः-
अश्लेशा नक्षत्र के देवता बुध
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से नागकेशर
के पेड़ को अश्लेशा नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और अश्लेशा नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग नागकेशर की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले
लोग अपने घर के खाली हिस्से में नागकेशर के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में अश्लेशा नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
१०.मघाः-
मघा नक्षत्र के देवता केतु
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से बरगद के पेड
को मघा नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और मघा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग बरगद
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में बरगद के पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक
मानचित्र में मघा नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
११.पूर्वाफल्गुनीः-
पूर्वाफल्गुनी नक्षत्र के
देवता शुक्र को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
पलास के पेड को पूर्वा फल्गुनी
नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और पूर्वा फल्गुनी नक्षत्र में
जन्म लेने वाले लोग पलास वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में
जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में पलास के पेड
को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में
पूर्वा फल्गुनी नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
१२.उत्तराफाल्गुनीः-
उत्तराफल्गुनी नक्षत्र के
देवता रवि को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
रुद्राक्ष के पेड
को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और
उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग रुद्राक्ष वृक्ष
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में रुद्राक्ष के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र
को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
१३.हस्तः-
हस्त नक्षत्र के देवता चंद्र
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से रीठा के
पेड को हस्त नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और हस्त नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग रीठा के
वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर
के खाली हिस्से में रीठा के पेड को लगाते है, हालांकि
वैज्ञानिक मानचित्र में हस्त नक्षत्र को एक विशेष रुप में
दिखाया गया है।
१४.चित्राः-
चित्रा नक्षत्र के देवता चित्रगुप्त
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से बेल के
पेड़ को चित्रा नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले
लोग बेल वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग
अपने घर के खाली हिस्से में बेल के पेड को लगाते है, हालांकि
वैज्ञानिक मानचित्र में चित्रा नक्षत्र को एक विशेष रुप में
दिखाया गया है।
१५.स्वातीः
स्वाती नक्षत्र के देवता राहु
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से अर्जुन के
पेड को स्वाती नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और
स्वाती नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अर्जुन वृक्ष की पूजा करते
है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में
अर्जुन के पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में
स्वाती नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
१६.विशाखाः-
विशाखा नक्षत्र के
देवता वृहस्पति को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक
ष्टिकोण से विकंकत के पेड
को विशाखा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और
विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग विकंकत वृक्ष
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में विकंकत के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में विकंकत नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
१७.अनुराधाः-
अनुराधा नक्षत्र के
देवता शनि को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
मौल श्री के पेड
को अनुराधा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और
अनुराधा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग मौल श्री की पूजा करते
है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में
मौल श्री के पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र
में मौल श्री नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
१८.ज्येष्ठाः-
ज्येष्ठा नक्षत्र के देवता बुध
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से चीड के पेड
को ज्येष्ठा नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और ज्येष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग चीड
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में चीड के पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक
मानचित्र में ज्येष्ठा नक्षत्र को एक विशेष रुप में
दिखाया गया है।
१९.मूलः-
मूल नक्षत्र के देवता केतु
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से साल के पेड़
को मूल नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग साल वृक्ष
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में साल के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में मूल नक्षत्र को एक विशेष रुप
में दिखाया गया है।
२०.पूर्वाषाढ ाः-
पूर्वाषाढ ा नक्षत्र के देवता शुक्र
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
सीता अशोक के पेड को पूर्वाषाढ ा
नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और पूर्वाषाढ ा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग
सीता अशोक के पेड की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में सीता अशोक के पेड
को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में
पूर्वाषाढ ा नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
२१.उत्तराषाढ ाः-
उत्तराषाढ ा नक्षत्र के
देवता रवि को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
कटहल के पेड को उत्तराषाढ ा
नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और उत्तराषाढ ा नक्षत्र में
जन्म लेने वाले लोग कटहल वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में
जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में कटहल के पेड
को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में
उत्तराषाढ ा नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
२२.श्रवणः-
श्रवण नक्षत्र के देवता चंद्र
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से अकवन के
पेड को श्रवण नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और श्रवण नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अकवन
वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर
के खाली हिस्से में अकवन के पेड को लगाते है, हालांकि
वैज्ञानिक मानचित्र में अकवन नक्षत्र को एक विशेष रुप में
दिखाया गया है।
२३.श्रविष्ठा या घनिष्ठा :-
श्रविष्ठा नक्षत्र के देवता मंगल
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से शम्मी
के पेड को श्रविष्ठा नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और श्रविष्ठा नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग शम्मी के पेड की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में शम्मी के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में श्रविष्ठा नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
२४.शतभिषाः-
शतभिषा नक्षत्र के देवता राहु
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से कदम्ब के
पेड़ को शतभिषा नक्षत्र
का प्रतीक माना जाता है और शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग कदम्ब वृक्ष की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने
वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में कदम्ब के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में शतभिषा नक्षत्र को एक
विशेष रुप में दिखाया गया है।
२५.पूर्व भाद्रपदः-
पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के
देवता वृहस्पति को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक
ष्टिकोण से आम के पेड को पूर्व
भाद्रपद नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और पूर्वा भाद्रपद
नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग आम के पेड की पूजा करते है। इस
नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के खाली हिस्से में आम के
पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में पूर्व
भाद्रपद नक्षत्र को एक विशेष रुप में दिखाया गया है।
२६.उत्तर भाद्रपदाः-
उत्तर भाद्रपदा नक्षत्र के
देवता शनि को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से
नीम के पेड को उत्तर
भाद्रपदा नक्षत्र का प्रतीक माना जाता है और उत्तर
भाद्रपदा नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग नीम के पेड
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में नीम के पेड को लगाते है, हालांकि वैज्ञानिक
मानचित्र में उत्तर भाद्रपद नक्षत्र को एक विशेष रुप में
दिखाया गया है।
२७.रेवतीः
रेवती नक्षत्र के देवता बुध
को माना जाता है,जबकि वैज्ञानिक ष्टिकोण से महुआ के पेड
को रेवती नक्षत्र का प्रतीक
माना जाता है और रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग महुआ
की पूजा करते है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग अपने घर के
खाली हिस्से में महुआ के पेड को लगाते है,
हालांकि वैज्ञानिक मानचित्र में रेवती नक्षत्र को एक विशेष
रुप में दिखाया गया है।


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