योगिनी एकादशी: मात्र एक दिन में करें समूल पापों का विनास
12/जून /2015
एकादशी तिथि को श्री हरिवासर तिथि भी कहा जाता है क्योंकि यह तिथि श्री हरि को अत्यंत प्रिय है इसलिए हरिवासर या एकादशी व्रत के दिन उपवास करना चाहिए तथा उपवास के साथ भगवान श्री कृष्ण के नाम संर्कीतन का श्रवण, कीर्तन और स्मरण करना अत्यधिक लाभ प्रद है।
उपवास शब्द दो अक्षरों के जोड़ से बना है उप और वास उप का अर्थ है नज़दीक और वास का अर्थ है भगवान के नज़दीक जैसे श्रीकृष्ण के नाम, गुण, लीला, परिकर,धाम का संकीर्तन करते हुए रहना। सभी इन्द्रियों पर संयम रखते हुए उपवास करना। अन्न आदि का एकादशी के दिन त्याग करके कन्द, मूल ,फल इत्यादि का भगवान को निवेदन करने के उपरांत प्रसाद ग्रहण करना।
व्रहा्वैवर्त पुराण में युधिष्ठर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी के महात्म को कहने का निवेदन किया। श्री कृष्ण ने कहा," समस्त पापों का नाश करने वाली यह एकादशी तिथि महापापों का नाश करने वाली है। यह संसार बंधन से मुक्ति देने वाली है।
योगिनी एकादशी की कथा
अलकापुरी के स्वामी कुबेर शिव के भक्त थे। कुबेर नित्य ही शिव की पूजा करते । हेम नाम का यक्ष माली उनकी पूजा के लिए मानसरोवर से कमलों के फूल हर रोज़ लेकर आता था। हेम माली की रूपवती पत्नी का नाम विशालाक्षी था जिस पर हेम बहुत अासक्त था।
एक दिन मानसरोवर से फूलों को लाकर हेम घर पर रूक गया तथा अपनी सुन्दर पत्नी से मोहयुक्त होकर रमण करतें-करतें उसे समय का पता ही नहीं चला और वे कुबेर को फूल देने नहींं जा सका तथा दोपहर के 2 बजे का समय कुबेर को माली की बाट जोहते हो गया। परिणामस्वरूप उसके द्वारा शिव जी की पूजा न हो सकी।
अति विलम्ब हो जाने के कारण कुबेर क्रोधित होकर बोले अरे यक्षों," दुष्ट हेम माली आज क्यों नहीं अाया?"
उसका पता लगाओ।
दूत ने आकर कहा कि," महाराज हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी के साथ प्रेम पूर्वक घर में विहार कर रहा है।"
यह सुनकर कुबेर बहुत क्रोघित हुए और सैनिकों को हेम माली को पकड़कर लाने का आदेश दिया। हेम माली देर तक फूल न पहुंचाए जाने के कारण बड़ा ही लज्जित और भयभीत हुआ। स्वयं को दोषी मानते हुए कुबेर के पास आकर खड़ा हो गया। उसे देखकर कुबेर क्रोध से लाल आंखो सहित उसे डांटते हुए बोले," अरे! पापिष्ठ, दुराचारी, तू मेरे परम अराध्य शंकर जी की अवज्ञा करके विषय भोग में लगा रहा। मैं तुझे श्राप देता हूं कि तुझे सफेद कोढ़ हो जाए और तेरी प्रियतमा पत्नी से सदा के लिए वियुक्त हो कर अधम स्थान पर जाकर रहे।"
कुबेर के अभिशाप से हेम माली अलकापुरी से भ्रष्ट होकर पृथ्वी पर आकर सफेद कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर बड़ा दुख पाने लगा। भूख-प्यास से व्याकुल एवं शारीरिक और मानसिक रूप से दुखी होकर समाज को छोड़कर वह जंगल में चला गया। न उसको दिन को चैन था न रात को नींद आती। सर्दी-गर्मी से वह बड़ा कष्ट भोगने लगा परन्तु शिव जी की भक्ति के कारण उसकी स्मृति बनी रही। अपने पापों के फल भोगते हुए भी अपने पूर्व कर्मी की याद को भुला नहीं पाया। वह घुमता हुअा हिमालय पर्वत पर जा पहुंचा।
वहां उसे महातपोनिषसमूल पापों का विनाश करने वाली हरिवासर तिथि योगिनी एकादशी को महातपोनिष्ठ मुनि श्रेष्ठ सात कल्प की उम्र वाले मार्कण्डय ऋषि के दर्शन हुए। शरीर पर कोढ़ होने के कारण दूर से ऋषि को उसने प्रणाम किया। परम दयालु मुनि ने उसे समीप बुलाया और पूछा," तुम्हारी कुष्ठ दशा का क्या कारण है? तुमने ऐसा कौन सा निन्दित कर्म किया जिस कारण तुम्हें ऐसी बुरी बीमारी ने पकड़ा?"
मार्कण्डेय ऋषि के पूछने पर उस यक्ष माली ने कहा," हे मुनिवर! हे दयालु! मैं यक्षराज कुबेर का सेवक हूं। शिव जी की पूजा के लिए मैं मान सरोवर से पुष्प चयन करके अपने मालिक कुबेर को नित्य नियमानुसार लाकर देता था। एक दिन कामासक्त होकर अपनी पत्नी के साथ रमण करता रहा समय का मुझे ध्यान न रहा। परिणामस्वरूप क्रोधित होकर कुबेर ने मुझे अभिशाप दे दिया जिस कारण मैं अपनी पत्नी से बिछुड़कर भयंकर कुष्ठ रोग को प्राप्त हुआ।"
आज न जाने मेरे कौन से पुण्य फल उदय हुए कि आपके दर्शन हो गए। हे मुनिराज! मुझे मंगल प्राप्ति का उपाय बतलाएं।
मुनिराज ने कहा," हे यक्ष! तुमने जो कहा वह सत्य कहा इसलिए मैं तुम्हें परम कल्याणकारी व्रत बतलाता हूं। तुम आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष वाली योगिनी एकादशी का व्रत करो उस व्रत के पुण्य प्रताप से तुम अवश्य ही कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाओगे।"
मुनि के यह वचन सुनकर उस यक्ष ने उनको दण्डवत प्रणाम किया तथा उनके उपदेश अनुसार बड़ी श्रद्धा से आषाढ़ कृष्णा योगिनी एकादशी का व्रत पालन किया। व्रत के प्रभाव से उसे पहले जैसा सुन्दर शरीर प्राप्त हुआ तथा वह उत्तम सुख भोगने लगा।
परमहंस ऊं विष्णुपाद 108 त्रिदण्डीस्वामी श्री श्रीमद भक्ति वल्लभ तीर्थ गोस्वामी जी महाराज जी अपने प्रवचनों में कहते हैं कि," एकादशी व्रत आदि भक्ति साधनों का असली उदेश्य राज्य, सुंदर स्त्री या सुंदर पति अथवा आज्ञाकारी पुत्र प्राप्त करना नहीं है। इसका असली उद्देश्य तो भगवान श्री हरि की अहैतुकी भक्ति प्राप्त करना है जोकि
नित्य है व जीव का सर्वोतम अभीष्ट है। हरिनाम करके या एकादशी व्रत करके भगवान से उसके बदले में दुनियावी वस्तुएं मांगना या मांगने की इच्छा करना बुद्धिमानी नहीं है क्योंकि ये हमेशा आपके पास रह भी नहीं पाएगी। भगवान से भगवान की सेवा मांगने से जीव का जीवन व उसकी एकादशी व्रत इत्यादि करने की साधना परिपूर्ण रूप में सफल होती है. Blogaway
Joga singh
jogasinghwar. Blogaway
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