31.5.15

राशि के अनुसार जानें किसे बनाएं अपना दोस्त

राशि के अनुसार जानें किसे बनाएं अपना दोस्त

मेष राशि वाले किनसे करें दोस्ती
मंगल की इस राशि में जिनका जन्म हुआ है उनके लिए सबसे अच्छे मित्र सिंह और धनु राशि के व्यक्ति होते हैं। जबकि मिथुन, तुला और कुंभ राशि के व्यक्तियों के साथ इनकी दोस्ती सामान्य रहती है।

वृष राशि वाले किनसे करें दोस्ती
इनकी दोस्ती कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशि वालों के साथ सामन्य रहती है जबकि बुध की कन्या राशि और शनि की मकर राशि के व्यक्तियों के साथ इनकी दोस्ती यादगार होती है।

मिथुन राशि वाले किन से करें दोस्ती
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिनका जन्म मिथुन राशि में होता है होता है उनकी दोस्ती और साझेदारी तुला एवं कुंभ राशि वालों से अच्छी रहती है।
जबकि धनु, मेष और सिंह राशि वालों के साथ इनकी दोस्ती सामान्य रहती है।

कर्क राशि वाले किनसे करें मित्रता
वृष, कन्या और मकर राशि वालों के साथ इनकी मित्रता ठीक-ठाक रहती है। जबकि मंगल की वृश्चिक और मीन राशि वाले व्यक्तियों के साथ इनकी गाढ़ी दोस्ती होती है।
दोनों एक दूसरे को सहयोग प्रदान करने के लिए तैयार रहते हैं। इनके बीच मनमुटाव की संभावना कम रहती हैं।

सिंह राशि वाले किनसे करें मित्रता
इस राशि के व्यक्तियों की दोस्ती मेष एवं धनु राशि के व्यक्तियों के साथ प्रगाढ़ होती है। जबकि मिथुन, तुला और कुंभ राशि के व्यक्तियों के साथ इनकी दोस्ती सामान्य रहती है।

कन्या राशि वाले किसे बनाएं अपना दोस्त
वृष एवं मकर राशि के व्यक्तियों के साथ इनकी दोस्ती विशेष रुप से सफल होती है। कर्क, वृश्चिक एवं मीन राशि के व्यक्तियों के साथ इनकी दोस्ती कुल मिलाकर ठीक चलती है।

तुला राशि वाले किनसे करें मित्रता
इनकी दोस्ती मिथुन एवं कुंभ राशि के व्यक्तियों के साथ खूब निभती है। जबकि मेष, सिंह व धनु राशि वाले व्यक्तियों के साथ भी इनकी दोस्ती अच्छी रहती है।
वृश्चिक राशि वाले किनसे करें मित्रता
इस राशि के व्यक्तियों की दोस्ती कर्क, वृश्चिक, वृष, कन्या एवं मकर इन पांच राशि के लोगों के साथ अच्छी रहती है।

धनु राशि वाले किनसे दोस्ती करें
मेष और सिंह राशि के लोगों से इनकी घनिष्ठ मित्रता होती है जबकि मिथुन,तुला और कुंभ राशि के लोगों के साथ इनके अच्छे संबंध रहते हैं।

मकर राशि वालों के लिए अच्छे दोस्त
कन्या, वृष और कर्क राशि वालों के साथ इनकी दोस्ती लंबे समय तक चलती है। इनके बीच बेहतर तालमेल होता है। जबकि मीन राशि के लोगों के साथ भी इनकी दोस्ती अच्छी रहती है।

कुंभ राशि वाले किनसे करें दोस्ती
मिथुन व तुला राशि वालों से दोस्ती करना इनके लिए सुखद रहता है। इनके साथ दोस्ती लंबे समय तक कायम रहती है जबकि मेष, सिंह और धनु राशि वालों के साथ दोस्ती सामान्य रहती है।

मीन राशि वाले किन्हें बनाएं अपना मित्र
कर्क व वृश्चिक राशि वालों के साथ दोस्ती करेंगे तो मित्रता सफल रहेगी। इससे आपस में विवाद की संभावना कम होगी और तालमेल अच्छा रहेगा। वृष, कन्या, मकर राशि वालों के साथ इनकी दोस्ती सामान्य रहेगी

27.5.15

मुहूर्त में लग्न और कार्य

मुहूर्त में लग्न और कार्य (Lagna According Work in Muhurta)
मुहूर्त (muhurat) वैदिक ज्योतिष (Vedic astrology) का महत्वपूर्ण अंग है। यह समय विशेष में कार्य की शुभता और अशुभता की जानकारी देता है। अगर आप अपने कार्य को सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो मुहूर्त में लग्न का विचार करके कार्य शुरू करें। तुला लग्न (Libra ascendant)से मीन लग्न (Pisces ascendant)में कौन से कार्य किये जा सकते हैं इसे देखिए:
तुला लग्न (Muhurta in Libra ascendant)
तुला शुक्र की राशि है (Venus is the lord of Libra). मूहूर्त साधन में यह प्रेम और मांगलिक कार्यों में शुभ परिणाम दायक होता है.कृषि सम्बन्धी कार्य इस लग्न में शुभ होता है.कारोबार एवं व्यवसाय के लिए भी यह शुभ लग्न है.इस लग्न में तीर्थ यात्रा एवं किसी विशेष कार्य हेतु यात्रा किया जा सकता है.संचय और भण्डारण के लिए तुला लग्न शुभ परिणामदायक होता है.इस लग्न में धन का निवेश लाभकारी माना जाता है.
वृश्चिक लग्न (Muhurta in Scorpio ascendant)
वृश्चिक मंगल की राशि(sign of Mars) है.इस राशि में ओज, साहस और पराक्रम का समावेश होता है.मुहूर्त के अनुसार इस लग्न के दौरान सरकारी काम को पूरा कर सकते हैं.साहसिक कार्यो के लिए मुहूर्त शास्त्र में इस लग्न को उत्तम बताया गया है.कठिन कार्यो को पूरा करने के लिए भी यह लग्न श्रेष्ठ माना गया है. राज्यारोहण एवं शत्रुओं से बदला लेने के लिए इस मुहूर्त का प्रयोग किया जा सकता है.
धनु लग्न (Muhurta in Sagittarius ascendant)
धनु गुरू की राशि(sign of Jupiter) है.इस राशि में मांगलिक कार्य (auspicious work) संपादित किये जा सकते हैं.विवाह के लिए इस लग्न को शुभ माना गया है.इस लग्न में धार्मिक यात्राएं एवं कारोबार के प्रयोजन से यात्रा का विचार किया जा सकता है. भूमि का स्वामित्व प्राप्त किया जा सकता है.यज्ञों एवं धार्मिक कार्यो का आयोजन किया जा सकता है.वाहन खरीदने के लिए भी इसे श्रेष्ठ लग्न माना गया है.
मकर लग्न (Muhurta in Capricorn ascendant)
मकर शनि की राशि है (Saturn is the lord of Capricorn). इस लग्न में घर का निर्माण किया जा सकता है.खेती से सम्बन्धित कार्य किये जा सकते हैं.जल क्षेत्र से सम्बन्धित कार्य के लिए भी यह लग्न शुभकारी होता है.जलयात्रा का विचार इस लग्न में किया जा सकता है.पशुओं के कारोबार एवं उनसे सम्बन्धित कार्य के लिए मकर लग्न का प्रयोग अनुकूल परिणामदायक होता है.
कुम्भ लग्न (Muhurta in Aquarius ascendant)
कुम्भ राशि का स्वामी भी शनि है (Saturn is the lord of Aquarius). जल क्षेत्र से सम्बन्धित कार्य के लिए यह उत्तम लग्न माना गया है.इस लग्न में जलयात्रा का विचार कर सकते हैं.संग्रह कर सकते हैं.शपथ पत्र पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.यात्रा की योजना भी इस लग्न में किया जा सकता है.वाहन खरीदने के लिए भी इस लग्न का प्रयोग किया जा सकता है.
मीन लग्न (Muhurta in Pisces ascendant)
गुरू बृहस्पति मीन लग्न के स्वामी है (Jupiter is the lord of Pisces).मुहूर्त साधना में मीन लग्न के अन्तर्गत शिक्षा एवं ज्ञानार्जन से सम्बन्धित कार्य किये जा सकते हैं.विवाह प्रसंग में भी मीन शुभकारी होता है.जलीय वस्तुओ का कारोबार एवं इससे सम्बन्धित कार्य मीन लग्न में अनुकूल होता है.कृषि कार्य के लिए मीन लग्न को शुभ कहा गया है.यात्रा के लिए इसे उत्तम लग्न माना गया है.पशुओं से सम्बन्धित कार्य एवं पशुपालन के लिए मीन उत्तम मुहूर्त होता है.

भारतीय संस्कृति में पंचांग, मुहूर्त महत्व

भारतीय संस्कृति में पंचांग, मुहूर्त का बहुत महत्व है। जो हमें किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले बहुत सारी सावधानियां बरतने की सलाह भी देता है। मुहूर्त के अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है, जिसके अनुसार रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार सम्बन्धी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए. शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए. रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं सन्धि नहीं करनी चाहिए. दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आये उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए. नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए. कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए. जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जुड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए. मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए. असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं, और बारहवीं राशि पर जब चन्द्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए. देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए. बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है. नये वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चन्द्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो.
ठीक उसी प्रकार कार्य विशेष के लिए अलग अलग शुभ मुहूर्त होता है. प्राचीन काल में यज्ञादि कार्यों के लिए मुहूर्त का विचार किया जाता था परंतु जैसे जैसे मुहूर्त की उपयोगिता और विलक्षणता से हम मनुष्य परिचित होते गये इसकी उपयोगिता दैनिक जीवन में बढ़ती चली गयी. मुहूर्त में विश्वास रखने वाले व्यक्ति कोई भी कदम उठाने से पहले मुहूर्त का विचार जरूर करते हैं.
मनुष्य जीवन में एक कोई भी शुभ कार्य (यात्रा ,मुंडन ,जनेऊ ,बिद्या प्राप्ति या विवाह )करना हो तो प्राय: हम पंडितों के पास मुहूर्त बिचारवाने के लिए निकल पड़ते है !हमें पंडित जो भी गलत या सही बताएं ,उस पर हम आँख मूंदकर क्रियान्वयन शुरू कर देते हैं !आज हम आपको इस सूत्र में मुहूर्त के उपयोग और महत्त्व पर प्रकाश डालेंगे और आशा करते हैं कि इस मंच का आप लोगों को यह एक अद्वितीय तोहफा के रूप में स्वीकार होगा !
वार और तिथि से बनने वाला योग – सिद्धयोग
अगर योग अनुकूल होता है तो शुभ कहलाता है और अगर कार्य की दृष्टि से प्रतिकूल होता है तो अशुभ कहलाता है। यहां हम दिन और तिथि के मिलने से बनने वाले सिद्ध योग की बात करते हैं जो शुभ कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।
सिद्ध योग का निर्माण किस प्रकार होता है सबसे पहले इसे जानते हैं—-
1. अगर शुक्रवार के दिन नन्दा तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी पड़े तो बहुत ही शुभ होता है ऐसा होने पर सिद्धयोग का निर्माण होता है।
2.भद्रा तिथि यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर बुधवार के दिन हो तो यह सिद्धयोग का निर्माण करती है।
3.जया तिथि यानी तृतीय, अष्टमी या त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़े तो यह बहुत ही मंगलमय होता है इससे भी सिद्धयोग का निर्माण होता है।
4.ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत चतुर्थ, नवम और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि के नाम से जाना जाता है अगर शनिवार के दिन रिक्ता तिथि पड़े तो यह भी सिद्धयोग का निर्माण करती है।
5.पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस को ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत पूर्णा तिथि के नाम से जाना जाता है। पूर्णा तिथि बृहस्पतिवार के दिन उपस्थित होने से भी सिद्ध योग बनता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सिद्धयोग बहुत ही शुभ होता है। इस योग के रहते कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, यह योग सभी प्रकार के मंगलकारी कार्य के लिए शुभफलदायी कहा गया है।
मुहूर्त के अंतर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है। जो निम्नानुसार है—-
– रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार संबंधी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए।
– शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए।
– रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं संधि नहीं करनी चाहिए। दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आए उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए।
– नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
– देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए।
– बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है।
– नए वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चंद्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो।
– कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए।
– जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जु़ड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए।
– मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए।
– असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं और बारहवीं राशि पर जब चंद्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।
हम यूँ तो किसी भी काम को करने से पहले मुहूर्त देखते हैं लेकिन कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जो हमेशा शुभ ही होते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने गए हैं जिनमें पंचांग की
शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है-
1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
2 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)
3 आश्विन शुक्ल दशमी (विजय दशमी)
4 दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग।
भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है-
1 भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)
2 देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)
3 बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)
4 फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)
इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है।
शपथ ग्रहण करने का मुहुर्त —-
प्राचीन काल में राज हुआ करते थे। राजगद्दी पर बैठने से पहले राजाओं का राज्याभिषेक होता था, राजा इस अवसर पर जनता की देखभाल अपने पुत्र के समान करने की सौगंध लेते थे, व राष्ट्रहित में कोई भी निर्णय लेने का वादा करते थे।
आज राजतंत्र समाप्त हो चला है और प्रजातंत्र स्थापित हो गया है !
ऐसे में राजा भले ही न रहे परन्तु शपथ की प्रथा आज भी कायम है। आज चुनाव के पश्चात लोक सभा, विधान सभा, राज्य सभा के सदस्य शपथ ग्रहण करते हैं. इनकी तरह सम्पूर्ण शासनतंत्र में कई ऐसे पद होते हैं जिनके लिये पद और गोपनियता की शपथ लेनी होती है। पद की शपथ लेना बहुत ही शुभ कार्य है, इस शुभ कार्य को शुभ मुहुर्त में करें तो उत्तम रहता है

नवीन खरीदी को शुभ बनाए

नवीन खरीदी को शुभ बनाए

वाहन खरीदने हेतु :
नया वाहन खरीदने पर तीन कौड़ियों को शुद्ध कर, पूजन, तिलक कर काले धागे में पिरोकर वाहन में लगाएं, वाहन शुभ फलदायक रहेगा। वाहन शुक्ल पक्ष में ही खरीदें।

16.5.15

जानें भगवान शिव क्यों कहलाए पंचमुखी

जानें भगवान शिव क्यों कहलाए पंचमुखी

हमारे देश के विभिन्न प्रांतों में अनेक देवताओं का पूजन होता रहा है किंतु शिव की व्यापकता ऐसी है कि वह हर जगह पूजे जाते हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथ, जो हर जिज्ञासा को शांत करने में समर्थ हैं, जो श्रुति स्मृति के दैदीप्यमान स्तंभ हैं, ऐसे वेदों के वाग्मय में जगह-जगह शिव को ईश्वर या रुद्र के नाम से संबोधित कर उनकी व्यापकता को दर्शाया गया है।
यजुर्वेद के एकादश अध्याय के 54वें मंत्र में कहा गया है कि रुद्रदेव ने भूलोक का सृजन किया और उसको महान तेजस्विता से युक्त सूर्यदेव ने प्रकाशित किया। उन रुद्रदेव की प्रचंड ज्योति ही अन्य देवों के अस्तित्व की परिचायक है। शिव ही सर्वप्रथम देव हैं, जिन्होंने पृथ्वी की संरचना की तथा अन्य सभी देवों को अपने तेज से तेजस्वी बनाया।
शिव को पंचमुखी, दशभुजा युक्त माना है। शिव के पश्चिम मुख का पूजन पृथ्वी तत्व के रूप में किया जाता है। उनके उत्तर मुख का पूजन जल तत्व के रूप में, दक्षिण मुख का तेजस तत्व के रूप में तथा पूर्व मुख का वायु तत्व के रूप में किया जाता है। भगवान शिव के ऊध्र्वमुख का पूजन आकाश तत्व के रूप में किया जाता है। इन पांच तत्वों का निर्माण भगवान सदाशिव से ही हुआ है। इन्हीं पांच तत्वों से संपूर्ण चराचर जगत का निर्माण हुआ है। तभी तो भवराज पुष्पदंत महिम्न में कहते हैं - हे सदाशिव! आपकी शक्ति से ही इस संपूर्ण संसार चर-अचर का निर्माण हुआ है।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि भगवान शिव उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के दृष्टा हैं। निर्माण, रक्षण एवं संहरण कार्यों का कर्ता होने के कारण उन्हें ही ब्रम्हा, विष्णु एवं रुद्र कहा गया है। इदं व इत्थं से उनका वर्णन शब्द से परे है। शिव की महिमा वाणी का विषय नहीं है। मन का विषय भी नहीं है। वे तो सारे ब्रह्मांड में तद्रूप होकर विद्यमान होने से सदैव श्वास-प्रश्वास में अनुभूत होते रहते हैं। इसी कारण ईश्वर के स्वरूप को अनुभव एवं आनंद की संज्ञा दी गई है।
भगवान शिव को अनेक नामों से जाना जाता है, जिसमें त्रिनेत्र, जटाधर, गंगाधर, महाकाल, काल, नक्षत्रसाधक, ज्योतिषमयाय, त्रिकालधृष, शत्रुहंता आदि अनेक नाम हैं।
भगवान शिव का एक नाम शत्रुहंता भी है। इसका अर्थ है, अपने भीतर के शत्रु भाव को समाप्त करना। अनेक कथाओं में हम देखते हैं कि जब ब्रह्मांड पर कोई भी विपत्ति आई, सभी देवता शिव के पास गए। चाहे समुद्रमंथन से निकलने वाला जहर हो या त्रिपुरासुर का आतंक या आपतदैत्य का कोलाहल, इसी कारण तो भगवान शिव परिवार के सभी वाहन शत्रु भाव त्यागकर परस्पर मैत्री भाव से रहते हैं। शिवजी का वाहन नंदी (बैल), पार्वती का वाहन सिंह, भगवान के गले का सर्प, कार्तिकेय का वाहन मयूर, गणोश का चूहा सभी परस्पर प्रेम एवं सहयोग भाव से रहते हैं।
शिव को त्रिनेत्र कहा गया है। ये तीन नेत्र सूर्य, चंद्र एवं वहनी है, जिनके नेत्र सूर्य एवं चंद्र हैं। शिव के बारे में जितना जाना जाए, उतना कम है। अधिक न कहते हुए इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि शिव केवल नाम ही नहीं हैं अपितु संपूर्ण ब्रह्मांड की प्रत्येक हलचल परिवर्तन, परिवर्धन आदि में भगवान सदाशिव के सर्वव्यापी स्वरूप के ही दर्शन होते हैं।

ऐसे घर का भोजन खाने से बढ़ते हैं पाप

ऐसे घर का भोजन खाने से बढ़ते हैं पाप

अन्न और मन का आपस में घनिष्ठ संबंध है तभी तो कहा जाता है, जैसा खाएं अन्न, वैसा बने मन। अन्न के प्रभाव से ही मन की सोचने समझने की शक्ति विकसित होती है। प्राचीन काल से ही आपसी रिश्तों में घनिष्ठता और प्रेम बढ़ाने के लिए लोग रिश्तेदारों और मित्रों को अपने घर खाने पर आमंत्रित करते आए हैं और यह परंपरा आज भी निभाई जाती है पर क्या आप जानते हैं हमें किन लोगों के घर का भोजन करना चाहिए और किनका नहीं पुराणों में बताया गया है कि कुछ ऐसे लोग और घर हैं जिनके यहां भोजन नहीं खाना चाहिए क्योंकि इससे पाप तो बढ़ते ही हैं साथ ही पुण्य भी नष्ट होते हैं
किसी भी महिला की पहचान उसके चरित्र से होती है। चरित्रवान महिला ही अपने गुणों से घर को स्वर्ग बनाती है। ऐसी स्त्री के घर में अन्नपूर्णा मां स्वयं निवास करती हैंं। उसकी रसोई में पका भोजन प्रशाद समान होता है। इसके विपरित चरित्रहीन महिला के घर का भोजन खाया जाए तो पाप कर्म बढ़ते हैं।
जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हैं, सही और गलत का भेद भुलकर धन कमाने को प्रथामिकता देते हैं ऐसे लोगों के घर मेहमान बन कर जाएंगे और उनके घर का भोजन ग्रहण करेंगे तो आप पर भी उनके चरित्र में बसी नकारात्मकता का संचार होने लगेगा।
किसी रोगी के घर उसकी खबर लेने जाएं तो कदापि उस घर का अन्न और जल ग्रहण न करें क्योंकि अस्वस्थ व्यक्ति के घर के वातावरण में भी रोग के कीटाणु हो सकते हैं जो कि निरोगी व्यक्ति को भी रोगी बना सकते हैं।
जब कोई व्यक्ति खाना बनाता है तो उस खाने में उस व्यक्ति के व्यक्तित्व के गुण भी आ जाते हैं। अत जो व्यक्ति स्वभाव से गुस्सेल हो उसके हाथ का बना भोजन न खाएं अन्यथा उसके गुस्से का अवगुण आपके भीतर भी प्रवेश कर जाएगा।
धर्म शास्त्रों में किन्नरों को दान देने का अत्यधिक महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इन्हें खुश करने से असीम सुखों की प्राप्ति की जा सकती है। किन्नरों को दान देने वालों में अच्छे-बुरे, दोनों प्रकार के लोग होते हैं कौन किस भाव से दान दे रहा है यह कोई नहीं जानता इसलिए उनके घर भोजन नहीं खाना चाहिए।
जो लोग अपने घर के नौकरों का ठीक ढ़ग से ध्यान न रखते हों, उन्हें बेवजह परेशान करत हों उनके यहां भोजन नहीं खाना चाहिए क्योंकि नौकरों द्वारा दि गई हाय आपको भी लग सकती है। जब भी किसी के घर भोजन के लिए जाए तो वापसी पर उस घर के नौकरों को कुछ इनाम या रूपए पैसे अवश्य दें। इससे वो खुश होकर आपको आशीर्वाद देंगे।
निंदा और चुगली से अच्छे खासे रिश्तों में दरार आ जाती है। कुछ लोग अपने घर में दावत इसी प्रयोजन से रखते हैं की दूसरे लोगों की निंदा और चुगली करके आनंद उठाएं। ऐसे लोगों के घर भोजन न करें अन्यथा आप भी अनजाने में पाप के भागी बन जाएंगे।

11.5.15

पंचक के समय न करें ये 5 काम

पंचक के समय न करें ये 5 काम
भारतीय ज्योतिष में पंचक को अशुभ समय माना गया है। इसलिए इस दौरान कुछ कार्य विशेष करने की मनाही है। आगे जानिए इन नक्षत्रों का प्रभाव तथा पंचक के दौरान कौन से 5 काम नहीं करने चाहिए-
1. पंचक के दौरान जिस समय घनिष्ठा नक्षत्र हो उस समय घास, लकड़ी आदि ईंधन एकत्रित नही करना चाहिए, इससे अग्नि का भय रहता है।
2. पंचक के दौरान दक्षिण दिशा में यात्रा नही करनी चाहिए, क्योंकि दक्षिण दिशा, यम की दिशा मानी गई है। इन नक्षत्रों में दक्षिण दिशा की यात्रा करना हानिकारक माना गया है।
3. पंचक के दौरान जब रेवती नक्षत्र चल रहा हो, उस समय घर की छत नहीं बनाना चाहिए, ऐसा विद्वानों का मत है। इससे धन हानि और घर में क्लेश होता है।
4. पंचक में चारपाई बनवाना भी अशुभ माना जाता है। विद्वानों के अनुसार ऐसा करने से कोई बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
5. पंचक में शव का अंतिम संस्कार करने से पहले किसी योग्य पंडित की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। यदि ऐसा न हो पाए तो शव के साथ पांच पुतले आटे या कुश (एक प्रकार की घास) से बनाकर अर्थी पर रखना चाहिए और इन पांचों का भी शव की तरह पूर्ण विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना चाहिए, तो पंचक दोष समाप्त हो जाता है। ऐसा गरुड़ पुराण में लिखा है।

9.5.15

ज्योतिषीय क्रियाओं में काम आती हैं ये चीजें

ज्योतिषीय क्रियाओं में काम आती हैं ये चीजें,      ये हैं इनसे जुड़े उपाय

ज्योतिषीय उपायों में अनेक वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ चीजें बहुत ही चमत्कारी होती हैं। यदि इनका विधि-विधान से सही प्रयोग किया जाए तो ये हर परेशानी दूर कर देती हैं तथा हर मनोकामना भी पूरी करती हैं। आज हम आपको ज्योतिषीय उपायों में काम आने वाली कुछ ऐसी ही चीजों तथा उनके कुछ प्रयोगों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार है-
गोमती चक्र
कुछ ज्योतिषीय प्रयोगों में एक ऐसे पत्थर का उपयोग किया जाता है, जो दिखने में साधारण होता है, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से अपना प्रभाव दिखाता है। उस पत्थर का नाम है गोमती चक्र। गोमती चक्र कम कीमत वाला एक ऐसा पत्थर है जो गोमती नदी में मिलता है। ये हैं इसके उपाय-
1. यदि कोर्ट-कचहरी जाते समय घर के बाहर गोमती चक्र रखकर उस पर दाहिना पांव रखकर जाएं तो उस दिन कोर्ट-कचहरी में सफलता प्राप्त होने के योग बढ़ जाते हैं।
2. यदि शत्रु बढ़ गए हों तो जितने अक्षर का शत्रु का नाम है, उतने गोमती चक्र लेकर उस पर शत्रु का नाम लिखकर उन्हें जमीन में गाड़ दें तो शत्रु परास्त हो जाएंगे।
3. यदि पैसों से संबंधित समस्या है तो 5 गोमती चक्र धन स्थान यानी ऐसी जगह रखें, जहां आप पैसे रखते हों। धन की समस्या समाप्त हो सकती है।

काली हल्दी
भोजन में उपयोग की जाने वाली हल्दी के बारे में हम सभी जानते हैं। हल्दी की एक प्रजाति ऐसी भी है, जिसका उपयोग ज्योतिषीय उपायों में किया जाता है, वह है काली हल्दी। काली हल्दी को धन व बुद्धि का कारक माना जाता है। काली हल्दी अनेक तरह के बुरे प्रभाव को कम करती है। ये हैं इसके उपाय-
1. काली हल्दी के 7 से 9 दाने बनाएं। उन्हें धागे में पिरोकर धूप, गूगल या लोबान से शोधन (थोड़ी देर इन दानों को इनके धुएं में रख कर) करने के बाद पहन लें। जो भी व्यक्ति इस तरह की माला पहनता है, वह ग्रहों के दुष्प्रभावों, टोने- टोटके व नजर के प्रभाव से सुरक्षित रहता है।
2. यदि आप किसी भी नए कार्य के लिए जा रहे हैं, तो काली हल्दी का टीका लगाकर जाने से उस कार्य में सफलता मिलने के योग बढ़ जाते हैं।

लघु नारियल
लघु नारियल का आकार सामान्य नारियल से थोड़ा छोटा होता है। लघु नारियल का प्रयोग अनेक उपायों में किया जाता है। लघु नारियल के कुछ साधारण उपाय इस प्रकार हैं-
1. 11 लघु नारियल मां लक्ष्मी के चरणों में रखकर ऊं महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् मंत्र का जाप करें। 2 माला जाप करने के बाद एक लाल कपड़े में उन लघु नारियलों को लपेट कर तिजोरी में रख दें व दीपावली के दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से धन लाभ के योग बनते हैं।
2. धन, वैभव व समृद्धि पाने के लिए 5 लघु नारियल स्थापित कर, उस पर केसर से तिलक करें और हर नारियल पर तिलक करते समय 27 बार नीचे लिखे मंत्र का मन ही मन जाप करते रहें-
मंत्र- ऐं ह्लीं श्रीं क्लीं
3. अगर आप चाहते हैं कि आपके घर में कभी धन-धान्य की कमी न रहे और अन्न का भंडार भरा रहे तो 11 लघु नारियल एक पीले कपड़े में बांधकर रसोई घर के पूर्वी कोने में बांध दें। इससे आपकी मनोकामना पूरी हो सकती है।

दक्षिणावर्ती शंख
ज्योतिष शास्त्र में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष महत्व है। इस शंख को विधि-विधान पूर्वक घर में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती है और धन की भी कभी कमी नहीं होती। दक्षिणावर्ती शंख के अनेक लाभ हैं, लेकिन इसे घर में रखने से पहले इसका शुद्धिकरण अवश्य करना चाहिए।
इस विधि से करें शुद्धिकरण
लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जाप करें-
ऊं श्री लक्ष्मी सहोदराय नम:
इस मंत्र की कम से कम 5 माला जाप करें।
ये हैं दक्षिणावर्ती शंख के उपाय
1. दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भण्डार में रखने से अन्न, धन भण्डार में रखने से धन, वस्त्र भण्डार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। बेडरूम में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
2. दक्षिणावर्ती जल में शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
3. इसे घर में रखने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा स्वत: ही समाप्त हो जाती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।

कमलगट्टा
धन प्राप्ति के लिए किए जाने वाले ज्योतिषीय उपायों में कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, कमल गट्टा भी उन्हीं में से एक है। कमल गट्टा कमल के पौधे में से निकलते हैं व काले रंग के होते हैं। यह बाजार में आसानी से मिल जाते हैं। मंत्र जाप के लिए इसकी माला भी बनती है। ये हैं इसके उपाय-
1. यदि रोज 108 कमल के बीजों से आहुति दें और ऐसा 21 दिन तक करें तो आने वाली कई पीढिय़ां संपन्न बनी रहती हैं।
2. यदि दुकान में कमल गट्टे की माला बिछाकर उसके ऊपर भगवती लक्ष्मी का चित्र स्थापित किया जाए तो व्यापार अच्छा चलता है।
3. कमल गट्टे की माला भगवती लक्ष्मी के चित्र पर पहना कर किसी नदी या तालाब में विसर्जित करें तो घर में निरंतर लक्ष्मी का आगमन बना रहता है।
4. जो व्यक्ति प्रत्येक बुधवार को 108 कमलगटटे के बीज लेकर घी के साथ एक-एक करके अग्नि में 108 आहुतियां देता है। उसके घर से दरिद्रता हमेशा के लिए चली जाती है।
5. जो व्यक्ति कमल गट्टे की माला अपने गले में धारण करता है। उस पर लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।

हकीक
ज्योतिष शास्त्र में कई विशेष प्रकार के पत्थरों का भी महत्व है। इन पत्थरों से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। हकीक भी एक ऐसा ही पत्थर है। हकीक का उपयोग विभिन्न पूजा-पाठ, साधनाओं और उपासनाओं में किया जाता है। ये हैं इसके उपाय-
1. किसी शुक्रवार को रात में देवी लक्ष्मी की पूजा करने के बाद एक हकीक माला लें और एक सौ आठ बार ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद माला को लक्ष्मीजी के मंदिर में अर्पित कर दें। धन से जुड़ी समस्याओं का समाधान हो सकता है।
2. 11 हकीक पत्थर लेकर किसी मंदिर में चढ़ा दें। कहें कि अमुक कार्य में विजय होना चाहता हूं तो उस कार्य में विजय प्राप्त होती है।
3. जो व्यक्ति श्रेष्ठ धन की इच्छा रखते हैं, वे रात में 27 हकीक पत्थर लेकर उसके ऊपर माता लक्ष्मी का चित्र स्थापित करें।

मोती शंख
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मोती शंख एक विशेष प्रकार का शंख होता है, ये आम शंख से थोड़ा अलग दिखाई देता है और थोड़ा चमकीला भी होता है। इस शंख को विधि-विधान से पूजन कर यदि तिजोरी में रखा जाए तो घर, कार्यस्थल, व्यापार स्थल और भंडार में पैसा टिकने लगता है। आमदनी बढ़ने लगती है। ये है इसका उपाय-
उपाय
किसी बुधवार को सुबह स्नान कर साफ कपड़े में अपने सामने मोती शंख को रखें और उस पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बना दें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जाप करें-
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
मंत्र का जाप स्फटिक माला से ही करें। मंत्रोच्चार के साथ एक-एक चावल इस शंख में डालें। इस बात का ध्यान रखें की चावल टूटे हुए ना हो। यह प्रयोग लगातार 11 दिनों तक करें। इस प्रकार रोज एक माला जाप करें। उन चावलों को एक सफेद रंग के कपड़े की थैली में रखें और 11 दिनों के बाद चावल के साथ शंख को भी उस थैली में रखकर तिजोरी में रखें।

एकाक्षी नारियल
ज्योतिषीय उपायों में नारियल का प्रयोग भी किया जाता है। नारियल कई प्रकार के होते हैं। उन्हीं में से एक होता है एकाक्षी नारियल। मान्यता के अनुसार ये नारियल साक्षात लक्ष्मी का रूप होता है। इसे घर में रखने से धन लाभ होता है। साथ ही, कई प्रकार की समस्याएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं। ये हैं इसके उपाय-
1. जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती है, उस घर के लोगों पर तांत्रिक क्रियाओं का प्रभाव नहीं होता है एवं उस परिवार के सदस्यों को मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व यश प्राप्त होता है।
2. यदि मुकदमें में विजय प्राप्त करनी हो तो रविवार को एकाक्षी नारियल पर विरोधी का नाम लिख कर, उस पर लाल कनेर का फूल रख दें और जिस दिन न्यायालय जाएं वह फूल साथ ले जाएं। फैसला आपके पक्ष में होने के योग बन सकते हैं।