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ज्योतिष की दृष्टि से जानें12 भावों में शनि

ज्योतिष की दृष्टि से जानें शनि

फलित ज्योतिष के शास्त्रों में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र और शनिश्चर आदि। शनि के नक्षत्र हैं,पुष्य,अनुराधा और उत्तराभाद्रपद। यह दो राशियों मकर और कुम्भ का स्वामी है। तुला राशि में 20 अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के 20 अंश परमनीच है। नीलम शनि का रत्न है। शनि की तीसरी, सातवीं, और दसवीं दृष्टि मानी जाती है। शनि सूर्य, चन्द्र, मंगल का शत्रु, बुध, शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार, कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है।
द्वादश भावों में शनि
जन्म कुंडली के बारह भावों मे जन्म के समय शनि अपनी गति और जातक को दिए जाने वाले फलों के प्रति भावानुसार जातक के जीवन के अन्दर क्या उतार और चढ़ाव मिलेंगे, सबका वृतांत कह देता है।
प्रथम भाव में शनि
शनि मन्द है और शनि ही ठंडक देने वाला है,सूर्य नाम उजाला तो शनि नाम अन्धेरा, पहले भाव मे अपना स्थान बनाने का कारण है कि शनि अपने गोचर की गति और अपनी दशा मे शोक पैदा करेगा,जीव के अन्दर शोक का दुख मिलते ही वह आगे पीछे सब कुछ भूल कर केवल अन्धेरे मे ही खोया रहता है। शनि जादू टोने का कारक तब बन जाता है, जब शनि पहले भाव मे अपनी गति देता है, पहला भाव ही औकात होती है, अन्धेरे मे जब औकात छुपने लगे, रोशनी से ही पहिचान होती है और जब औकात छुपी हुई हो तो शनि का स्याह अन्धेरा ही माना जा सकता है। अन्धेरे के कई रूप होते हैं, एक अन्धेरा वह होता है जिसके कारण कुछ भी दिखाई नही देता है, यह आंखों का अन्धेरा माना जाता है, एक अन्धेरा समझने का भी होता है, सामने कुछ होता है और समझा कुछ जाता है, एक अन्धेरा बुराइयों का होता है, व्यक्ति या जीव की सभी अच्छाइयां बुराइयों के अन्दर छुपने का कारण भी शनि का दिया गया अन्धेरा ही माना जाता है, नाम का अन्धेरा भे होता है, किसी को पता ही नहीं होता है कि कौन है और कहां से आया है, कौन मां है और कौन बाप है आदि के द्वारा किसी भी रूप में छुपाव भी शनि के कारण ही माना जाता है, व्यक्ति चालाकी का पुतला बन जाता है।
प्रथम भाव शनि के द्वारा शनि अपने स्थान से प्रथम भाव के अन्दर स्थिति रख कर तीसरे भाव को देखता है, तीसरा भाव अपने से छोटे भाई बहनों का भी होता है। अपनी अन्दरूनी ताकत का भी होता है, पराक्रम का भी होता है, जो कुछ भी हम दूसरों से कहते है, किसी भी साधन से, किसी भी तरह से शनि के कारण अपनी बात को संप्रेषित करने में कठिनाई आती है। जो कहा जाता है वह सामने वाले को या तो समझ में नहीं आता है और आता भी है तो एक भयानक अन्धेरा होने के कारण वह कही गई बात को न समझने के कारण कुछ का कुछ समझ लेता है परिणाम के अन्दर फल भी जो चाहिए वह नहीं मिलता है।
अक्सर देखा जाता है कि जिसके प्रथम भाव मे शनि होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू कर देता है, उसका कारण उसके द्वारा जोर जोर से बोलने की आदत नहीं, प्रथम भाव का शनि सुनने के अन्दर कमी कर देता है और सामने वाले को जोर से बोलने पर ही या तो सुनाई देता है या वह कुछ का कुछ समझ लेता है। इसलिए जीवन साथी के साथ कुछ सुनने और कुछ समझने के कारण मानसिक न समझी का परिणाम सम्बन्धों मे कड़वाहट घुल जाती है और सम्बन्ध टूट जाते हैं।
इसकी प्रथम भाव से दसवीं नजर सीधी कर्म भाव पर पड़ती है। यही कर्म भाव ही पिता का भाव भी होता है। जातक को कर्म करने और कर्म को समझने मे काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। जब किसी प्रकार से कर्म को नहीं समझा जाता है तो जो भी किया जाता है वह कर्म न होकर एक भार स्वरूप ही समझा जाता है। यही बात पिता के प्रति मान ली जाती है,पिता के प्रति शनि अपनी सिफ़्त के अनुसार अंधेरा देता है और उस अन्धेरे के कारण पिता ने पुत्र के प्रति क्या किया है समझ नहीं होने के कारण पिता पुत्र में अनबन भी बनी रहती है। पुत्र का लगन या प्रथम भाव का शनि माता के चौथे भाव मे चला जाता है और माता को जो काम नहीं करने चाहिए वे उसको करने पडते हैं। कठिन और एक सीमा मे रहकर माता के द्वारा काम करने के कारण उसका जीवन एक घेरे में बंधा सा रह जाता है और वह अपनी शरीरी सिफ़्त को उस प्रकार से प्रयोग नहीं कर पाती है। जिस प्रकार से एक साधारण आदमी अपनी जिन्दगी को जीना चाहता है।
दूसरा भाव भौतिक धन का भाव है, भौतिक धन से मतलब है रुपया,पैसा, सोना, चांदी, हीरा, मोती, जेवरात आदि। जब शनि देव दूसरे भाव में होते हैं तो अपने ही परिवार वालो के प्रति अन्धेरा भी रखते हैं। अपने ही परिवार वालों से लड़ाई-झगड़ा आदि करवा कर अपने को अपने ही परिवार से दूर कर देते हैं। धन के मामले में पता नहीं चलता है कितना आया और कितना खर्च किया, कितना कहां से आया, दूसरा भाव ही बोलने का भाव है। जो भी बात की जाती है उसका अन्दाज नहीं होता है कि क्या कहा गया है, गाली भी हो सकती है और ठंडी बात भी, ठंडी बात से मतलब है नकारात्मक बात, किसी भी बात को करने के लिये कहा जाय, उत्तर में न ही निकले।
दूसरा शनि चौथे भाव को भी देखता है, चौथा भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने सुखों के प्रति भी चौथे भाव से पता किया जाता है, दूसरा शनि होने पर यात्रा वाले कार्य और घर में सोने के अलावा और कुछ नहीं दिखाई देता है। दूसरा शनि सीधे रूप में आठवें भाव को देखता है, आठवा भाव शमशानी ताकतों की तरफ रुझान बढ़ा देता है। व्यक्ति भूत, प्रेत, जिन्न और पिशाची शक्तियों को अपनाने में अपना मन लगा देता है। शमशानी साधना के कारण उसका खान-पान भी शमशानी हो जाता है, शराब, कबाब और भूत के भोजन में उसकी रुचि बढ़ जाती है। दूसरा शनि ग्यारहवें भाव को भी देखता है, ग्यारहवां भाव अचल सम्पत्ति के प्रति अपनी आस्था को अन्धेरे में रखता है, मित्रों और बड़े भाई-बहनों के प्रति दिमाग में अन्धेरा रखता है। वे कुछ करना चाहते हैं लेकिन व्यक्ति के दिमाग में कुछ और ही समझ में आता है।
तीसरे भाव में शनि
तीसरा भाव पराक्रम का है, व्यक्ति के साहस और हिम्मत का है, जहां भी व्यक्ति रहता है, उसके पड़ोसियों का है। इन सबके कारणों के अन्दर तीसरे भाव से शनि पंचम भाव को भी देखता है, जिनमे शिक्षा, संतान और तुरंत आने वाले धन को भी जाना जाता है। मित्रों की सहभागिता और भाभी का भाव भी पांचवा भाव माना जाता है, पिता की मृत्यु का और दादा के बड़े भाई का भाव भी पांचवा है। इसके अलावा नवें भाव को भी तीसरा शनि आहत करता है, जिसमे धर्म, सामाजिक व्यव्हारिकता, पुराने रीति- रिवाज और पारिवारिक चलन आदि का ज्ञान भी मिलता है। तीसरा शनि आहत करता है। मकान और आराम करने वाले स्थानों के प्रति यह शनि अपनी अन्धेरे वाली नीति को प्रतिपादित करता है। ननिहाल खानदान को यह शनि प्रताड़ित करता है।
चौथे भाव में शनि
चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिए काफी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है, आजीवन कष्ट देने वाला होने से पुराणों में इस शनि वाले व्यक्ति का जीवन नर्कमय ही बताया जाता है। अगर यह शनि तुला, मकर, कुम्भ या मीन का होता है, तो इस के फल में कष्टों में कुछ कमी आ जाती है।
पंचम भाव का शनि
इस भाव में शनि के होने के कारण व्यक्ति को मन्त्रवेत्ता बना देता है, वह कितने ही गूढ मन्त्रों के द्वारा लोगो का भला करने वाला तो बन जाता है लेकिन अपने लिए जीवन साथी के प्रति,जायदाद के प्रति और नगद धन के साथ जमा पूंजी के लिए दुख ही उठाया करता है। संतान में शनि की सिफ्त स्त्री होने और ठंडी होने के कारण से संतति मे विलंब होता है, कन्या संतान की अधिकता होती है, जीवन साथी के साथ मन मुटाव होने से वह अधिक तर अपने जीवन के प्रति उदासीन ही रहता है।
षष्ठ भाव में शनि
इस भाव में शनि कितने ही दैहिक दैविक और भौतिक रोगों का दाता बन जाता है लेकिन इस भाव का शनि पारिवारिक शत्रुता को समाप्त कर देता है। मामा खानदान को समाप्त करने वाला होता है,चाचा खानदान से कभी बनती नहीं है। व्यक्ति अगर किसी प्रकार से नौकरी वाले कामों को करता रहता है तो सफल होता रहता है।
अगर किसी प्रकार से वह मालिकी वाले कामों को करता है तो वह असफल हो जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठवें भाव को देखने के कारण से व्यक्ति दूर दृष्टि से किसी भी काम या समस्या को नहीं समझ पाता है। कार्यों से किसी न किसी प्रकार से अपने प्रति जोखिम को नहीं समझ पाने से जो भी कमाता है, या जो भी किया जाता है, उसके प्रति अन्धेरा ही रहता है, और अक्स्मात समस्या आने से परेशान होकर जो भी पास में होता है गंवा देता है।
बारहवें भाव में अन्धेरा होने के कारण से बाहरी आफ़तों के प्रति भी अन्जान रहता है, जो भी कारण बाहरी बनते हैं उनके द्वारा या तो ठगा जाता है या बाहरी लोगों की शनि वाली चालाकियों के कारण अपने को आहत ही पाता है। खुद के छोटे भाई बहन क्या कर रहे हैं और उनकी कार्य प्रणाली खुद के प्रति क्या है उसके प्रति अन्जान रहता है। अक्सर इस भाव का शनि कहीं आने-जाने पर रास्तों में भटकाव भी देता है और अक्सर ऐसे लोग जानी हुई जगह पर भी भूल जाते हैं।
सातवां भाव पत्नी और मन्त्रणा करने वाले लोगों से अपना सम्बन्ध रखता है। जीवन साथी के प्रति अन्धेरा और दिमाग में नकारात्मक विचारों के लगातार बने रहने से व्यक्ति अपने को हमेशा हर बात में छुद्र ही समझता रहता है। जीवन साथी थोड़े से समय के बाद ही नकारा समझ कर अपना पल्ला जातक से झाड़ कर दूर होने लगता है, अगर जातक किसी प्रकार से अपने प्रति सकारात्मक विचार नहीं बना पाए तो अधिकतर मामलों में गृहस्थियों को बरबाद ही होता देखा गया है और दो शादियों के परिणाम सप्तम शनि के कारण ही मिलते देखे गये हैं,सप्तम शनि पुरानी रिवाजों के प्रति और अपने पूर्वजों के प्रति उदासीन ही रहता है, उसे केवल अपने ही प्रति सोचते रहने के कारण और मैं कुछ नहीं कर सकता हूँं यह विचार बना रहने के कारण वह अपनी पुरानी मर्यादाओं को अक्सर भूल ही जाता है।
पिता और पुत्र मे कार्य और अकार्य की स्थिति बनी रहने के कारण अनबन ही बनी रहती है। व्यक्ति अपने रहने वाले स्थान पर अपने कारण बनाकर अशांति उत्पन्न करता रहता है। अपनी माता या माता जैसी महिला के मन में विरोध भी पैदा करता रहता है, उसे लगता है कि जो भी उसके प्रति किया जा रहा है, वह गलत ही किया जा रहा है और इसी कारण से वह अपने ही लोगों से विरोध पैदा करने में नहीं हिचकता है। शरीर के पानी पर इस शनि का प्रभाव पड़ने से दिमागी विचार गंदे हो जाते हैं। व्यक्ति अपने शरीर में पेट और जनन अंगो मे सूजन और महिला जातकों की बच्चादानी आदि की बीमारियां इसी शनि के कारण से मिलती है।
अष्टम भाव में शनि
इस भाव का शनि खाने-पीने और मौज-मस्ती करने के चक्कर में जेब हमेशा खाली रखता है। किस काम को कब करना है इसका अन्दाजा नहीं होने के कारण से व्यक्ति के अन्दर आवारागीरी का उदय होता देखा गया है।
नवम भाव का शनि
नवां भाव भाग्य का माना गया है। इस भाव में शनि होने के कारण से कठिन और दुख दाई यात्राएं करने को मिलती हैं, लगातार घूम कर सेल्स आदि के कामों में काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। अगर यह भाव सही होता है, तो व्यक्ति मजाकिया होता है, और हर बात को चुटकुलों के द्वारा कहा करता है मगर जब इस भाव में शनि होता है तो व्यक्ति सीरियस हो जाता है और एकान्त में अपने को रखने अपनी भलाई सोचता है। खेती वाले कामों, घर बनाने वाले कामों जायदाद से जुड़े कामों की तरफ अपना मन लगाता है। अगर कोई अच्छा ग्रह इस शनि पर अपनी नजर रखता है तो व्यक्ति जज वाले कामों की तरफ और कोर्ट-कचहरी वाले कामों की तरफ अपना रुझान रखता है। जानवरों की डाक्टरी और जानवरों को सिखाने वाले काम भी करता है। अधिकतर नवें शनि वाले लोगों को जानवर पालना बहुत अच्छा लगता है। किताबों को छापकर बेचने वाले भी नवें शनि से कहीं न कहीं जुडे़ होते हैं।
दशम भाव का शनि
दसवां शनि कठिन कामों की तरफ़ मन ले जाता है, जो भी मेहनत वाले काम, लकड़ी, पत्थर, लोहे आदि के होते हैं वे सब दसवें शनि के क्षेत्र में आते हैं, व्यक्ति अपने जीवन में काम के प्रति एक क्षेत्र बना लेता है और उस क्षेत्र से निकलना नहीं चाहता है। राहु का असर होने से या किसी भी प्रकार से मंगल का प्रभाव बन जाने से इस प्रकार का व्यक्ति यातायात का सिपाही बन जाता है, उसे जिन्दगी के कितने ही काम और कितने ही लोगों को बारी बारी से पास करना पडता है, दसवें शनि वाले की नजर बहुत ही तेज होती है वह किसी भी रखी चीज को नहीं भूलता है। मेहनत की कमाकर खाना जानता है, अपने रहने के लिए जब भी मकान आदि बनाता है तो केवल स्ट्रक्चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने के लिये कभी भी बढिया आलीशान मकान नहीं बन पाता है। गुरु सही तरीके से काम कर रहा हो तो व्यक्ति एक्ज्यूटिव इन्जीनियर की पोस्ट पर काम करने वाला बन जाता है।
ग्यारहवां शनि
शनि दवाइयों का कारक भी है और इस घर में जातक को साइंटिस्ट भी बना देता है, अगर जरा सी भी बुध साथ देता हो तो व्यक्ति गणित के फ़ार्मूले और नई खोज करने मे माहिर हो जाता है। चैरिटी वाले काम करने मे मन लगता है, मकान के स्ट्रक्चर खडा करने और वापस बिगाड़ कर बनाने मे माहिर होता है। व्यक्ति के पास जीवन में दो मकान तो होते ही है। दोस्तों से हमेशा चालकियां ही मिलती है, बडा भाई या बहन के प्रति व्यक्ति का रुझान कम ही होता है। कारण वह न तो कुछ शो करता है और न ही किसी प्रकार की मदद करने में अपनी योग्यता दिखाता है, अधिकतर लोगों के इस प्रकार के भाई या बहन अपने को जातक से दूर ही रखने में अपनी भलाई समझते हैं।
बारहवां शनि
नवां घर भाग्य या धर्म का होता है तो बारहवां घर धर्म का घर होता है, व्यक्ति को बारहवां शनि पैदा करने के बाद अपने जन्म स्थान से दूर ही कर देता है, वह दूरी शनि के अंशों पर निर्भर करती है।

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