3.5.15

कुण्डली में केतु विभिन्न 12भावों में उपस्थिति

कुण्डली में केतु  विभिन्न 12भावों में उपस्थिति

जातक की जन्म-कुण्डली में विभिन्न भावों में केतु की उपस्थिति भिन्न-भिन्न प्रभाव दिखाती हैं।

प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी होता है।
द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी होता है।
तृतीय भाव में केतु हो तो जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रुसे डरने वाला एवं सुखहीन होता है।
अष्टम भाव में हो तो वह दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्रीद्वेषी एवं चालाक होता है।
नवम भाव में हो तो सुखभिलाषी, अपयशी होता है।
दशम भाव में हो तो पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।
एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक होता है। एस प्रकार का जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु उदर रोग से पीड़ित रहता है।
द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।


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