27.5.15

भारतीय संस्कृति में पंचांग, मुहूर्त महत्व

भारतीय संस्कृति में पंचांग, मुहूर्त का बहुत महत्व है। जो हमें किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले बहुत सारी सावधानियां बरतने की सलाह भी देता है। मुहूर्त के अन्तर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है, जिसके अनुसार रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार सम्बन्धी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए. शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए. रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं सन्धि नहीं करनी चाहिए. दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आये उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए. नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए. कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए. जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जुड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए. मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए. असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं, और बारहवीं राशि पर जब चन्द्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए. देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए. बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है. नये वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चन्द्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो.
ठीक उसी प्रकार कार्य विशेष के लिए अलग अलग शुभ मुहूर्त होता है. प्राचीन काल में यज्ञादि कार्यों के लिए मुहूर्त का विचार किया जाता था परंतु जैसे जैसे मुहूर्त की उपयोगिता और विलक्षणता से हम मनुष्य परिचित होते गये इसकी उपयोगिता दैनिक जीवन में बढ़ती चली गयी. मुहूर्त में विश्वास रखने वाले व्यक्ति कोई भी कदम उठाने से पहले मुहूर्त का विचार जरूर करते हैं.
मनुष्य जीवन में एक कोई भी शुभ कार्य (यात्रा ,मुंडन ,जनेऊ ,बिद्या प्राप्ति या विवाह )करना हो तो प्राय: हम पंडितों के पास मुहूर्त बिचारवाने के लिए निकल पड़ते है !हमें पंडित जो भी गलत या सही बताएं ,उस पर हम आँख मूंदकर क्रियान्वयन शुरू कर देते हैं !आज हम आपको इस सूत्र में मुहूर्त के उपयोग और महत्त्व पर प्रकाश डालेंगे और आशा करते हैं कि इस मंच का आप लोगों को यह एक अद्वितीय तोहफा के रूप में स्वीकार होगा !
वार और तिथि से बनने वाला योग – सिद्धयोग
अगर योग अनुकूल होता है तो शुभ कहलाता है और अगर कार्य की दृष्टि से प्रतिकूल होता है तो अशुभ कहलाता है। यहां हम दिन और तिथि के मिलने से बनने वाले सिद्ध योग की बात करते हैं जो शुभ कार्य के लिए उत्तम माना जाता है।
सिद्ध योग का निर्माण किस प्रकार होता है सबसे पहले इसे जानते हैं—-
1. अगर शुक्रवार के दिन नन्दा तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी या एकादशी पड़े तो बहुत ही शुभ होता है ऐसा होने पर सिद्धयोग का निर्माण होता है।
2.भद्रा तिथि यानी द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी अगर बुधवार के दिन हो तो यह सिद्धयोग का निर्माण करती है।
3.जया तिथि यानी तृतीय, अष्टमी या त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़े तो यह बहुत ही मंगलमय होता है इससे भी सिद्धयोग का निर्माण होता है।
4.ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत चतुर्थ, नवम और चतुर्दशी को रिक्ता तिथि के नाम से जाना जाता है अगर शनिवार के दिन रिक्ता तिथि पड़े तो यह भी सिद्धयोग का निर्माण करती है।
5.पंचमी, दशमी, पूर्णिमा, अमावस को ज्योतिषशास्त्र के अन्तर्गत पूर्णा तिथि के नाम से जाना जाता है। पूर्णा तिथि बृहस्पतिवार के दिन उपस्थित होने से भी सिद्ध योग बनता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सिद्धयोग बहुत ही शुभ होता है। इस योग के रहते कोई भी शुभ कार्य सम्पन्न किया जा सकता है, यह योग सभी प्रकार के मंगलकारी कार्य के लिए शुभफलदायी कहा गया है।
मुहूर्त के अंतर्गत कुछ विशेष प्रकार की सावधानियों का जिक्र किया गया है। जो निम्नानुसार है—-
– रिक्ता तिथियों यानी चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी के दिन रोजगार संबंधी कोई भी नया काम नहीं शुरू करना चाहिए।
– शुभ एवं मांगलिक कार्य अमावस्या तिथि में शुरू नहीं करना चाहिए।
– रविवार, मंगलवार एवं शनिवार के दिन समझौता एवं संधि नहीं करनी चाहिए। दिन, तिथि व नक्षत्र का योग जिस दिन 13 आए उस दिन उत्सव का आयोजन नहीं करना चाहिए।
– नन्दा तिथियों एवं प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी तिथि के दिन नवीन योजना पर कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
– देवशयन काल में बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं दिलाना चाहिए।
– बुधवार के दिन उधार देना व मंगलवार को उधर लेना मुहूर्त की दृष्टि से शुभ नहीं माना गया है।
– नए वाहन खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि आपकी राशि से चंद्रमा घात राशि पर मौजूद नहीं हो।
– कोई ग्रह जब उदय या अस्त हो तो उसके तीन दिन पहले और बाद में नया काम नहीं करना चाहिए।
– जन्म राशि और जन्म नक्षत्र का स्वामी जब अस्त, वक्री अथवा शत्रु ग्रहों के बीच हों तब आय एवं जीवन से जु़ड़े विषय को विस्तार नहीं देना चाहिए।
– मुहूर्त में क्षय तिथि का भी त्याग करना चाहिए।
– असफलता से बचने के लिए जन्म राशि से चौथी, आठवीं और बारहवीं राशि पर जब चंद्र हो उस समय नया काम शुरू नहीं करना चाहिए।
हम यूँ तो किसी भी काम को करने से पहले मुहूर्त देखते हैं लेकिन कुछ मुहूर्त ऐसे होते हैं जो हमेशा शुभ ही होते हैं। नीचे दिए गए मुहूर्त स्वयं सिद्ध माने गए हैं जिनमें पंचांग की
शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है-
1 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा
2 वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया)
3 आश्विन शुक्ल दशमी (विजय दशमी)
4 दीपावली के प्रदोष काल का आधा भाग।
भारत वर्ष में इनके अतिरिक्त लोकचार और देशाचार के अनुसार निम्नलिखित तिथियों को भी स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना जाता है-
1 भड्डली नवमी (आषाढ़ शुक्ल नवमी)
2 देवप्रबोधनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी)
3 बसंत पंचमी (माघ शुक्ल पंचमी)
4 फुलेरा दूज (फाल्गुन शुक्ल द्वितीया)
इनमें किसी भी कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं है। परंतु विवाह इत्यादि में तो पंचांग में दिए गए मुहूर्तों को ही स्वीकार करना श्रेयस्कर रहता है।
शपथ ग्रहण करने का मुहुर्त —-
प्राचीन काल में राज हुआ करते थे। राजगद्दी पर बैठने से पहले राजाओं का राज्याभिषेक होता था, राजा इस अवसर पर जनता की देखभाल अपने पुत्र के समान करने की सौगंध लेते थे, व राष्ट्रहित में कोई भी निर्णय लेने का वादा करते थे।
आज राजतंत्र समाप्त हो चला है और प्रजातंत्र स्थापित हो गया है !
ऐसे में राजा भले ही न रहे परन्तु शपथ की प्रथा आज भी कायम है। आज चुनाव के पश्चात लोक सभा, विधान सभा, राज्य सभा के सदस्य शपथ ग्रहण करते हैं. इनकी तरह सम्पूर्ण शासनतंत्र में कई ऐसे पद होते हैं जिनके लिये पद और गोपनियता की शपथ लेनी होती है। पद की शपथ लेना बहुत ही शुभ कार्य है, इस शुभ कार्य को शुभ मुहुर्त में करें तो उत्तम रहता है

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