4.4.15

योगिनी एकादशी व्रत


साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने बैठकर
संकल्प लें। संकल्प में यह मंत्र बोलें -
मम सकल पापक्षयपूर्वक कुष्ठादिरोग निवृत्तिकामनया
योगिन्येकादशीव्रतमहं करिष्ये।
इसके बाद भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़के और उस चरणामृत को पिए। माना जाता है कि इससे विशेष रूप से कुष्ठ रोगी की पीड़ा खत्म होती है और वह रोगमुक्त हो जाता है।
इसके बाद भगवान की गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं उनकी कथा सुनें। इस दिन तन, मन से हिंसा का त्याग करें और किसी की बुराई न करें। यथासंभव रात में जागरण करें भजन, कीर्तन एवं श्री हरि का स्मरण करें।
एकादशी को जुआ खेलना, सोना, पान खाना, दातून करना,परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, संभोग, क्रोध तथा झूठ बोलना इन ग्यारह बातों का त्याग करें।योगिनी एकादशी व्रत के ऐसे पालन से सभी रोग और व्याधियों का अंत होता है। साथ ही मन से अलगाव की भावना मिट जाती है और बिछुड़े परिजन या संबंधी से मिलन होता है।

आसाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 1 जूलाई को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इस व्रत से जुड़ी कथा इस प्रकार है। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी।
कथा
स्वर्ग की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
पूजा में विलंब होती देख राजा कुबेर ने सेवकों को माली के न आने का कारण जानने के लिए भेजा। तब सेवकों ने पूरी बात आकर राजा को सच-सच बता दी। यह सुनकर कुबेर बहुत क्रोधित हुआ और उसने माली को श्राप दे दिया कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक(पृथ्वी) में जाकर कोढ़ी बनेगा। कुबेर के श्राप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतध्र्यान हो गई। 
मृत्युलोक में बहुत समय तक हेम माली दु:ख भोगता रहा परंतु उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान रहा। एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले- तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से तुम्हारी यह हालत हो गई। हेम माली ने पूरी बात उन्हें बता दी। उसकी व्यथा सुनकर ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। हेम माली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह अपने पुराने स्वरूप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।

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