शनिकृपा के बिना संभव नहीं है आपके घर में
लक्ष्मी का आगमन
शास्त्रानुसार पौराणिक काल में आकाशगंगा का विचरण
करते हुए लक्ष्मी जी शानि लोक पहुंची। आदर सत्कार पश्चात शनिदेव ने माता लक्ष्मी से उनके आने का कारण पूछा। इस पर महालक्ष्मी ने शनिदेव से प्रशन पूछा कि "हे शनि देवता! मैं
जगात्प्रसूता विष्णुपत्नी लक्ष्मी अपने स्वभाव और प्रभाव से लोगों को धनवान बनाती हूं और आप लोगों का धन छीन कर उन्हें भिखारी बना देते हैं। आखिर आप ऐसा कार्य क्यों करते हैं ?
और आपका मेरे विरूद्ध कार्य करने का उद्देश क्या है ? और क्या मेरा लोगों को सुख और संपन्नता देना दोषपूर्ण है?"
लक्ष्मी जी का यह प्रशन सुनने के बाद जगत न्यायाधीश
शनि प्रसन्न मुद्रा में माता लक्ष्मी से बोले कि,"हे
देवी लक्ष्मी, इसमें आपका कोई दोष नहीं है।
जो जीवात्मा स्वयं जानबूझकर भ्रष्टाचार व अत्याचार में
लिप्त रहती हैं तथा क्रूर और दुष्कर्म से लोगों को पीड़ित
करती हैं। उन्हें मैं छायामार्तंड शनि दंड अवश्य देता हूं। ऐसे पापी प्राणियों को दंड देने का कार्य मुझे परमेश्वर ने सौंपा है
इसलिए मैं सूर्यपुत्र शनि न्यायधीश बनकर जीवों को उनके कर्मों के अनुसार दण्डित करता हूं।"
उत्तर सुनने के बाद माता लक्ष्मी ने शनि से कहा कि,"हे शनिदेव!
मुझे आपकी कथनी पर अविश्वास है और मैं अभी एक निर्धन और संतानहीन मनुष्य को अपनी इच्छा से धनी व पुत्रवान बना देती हूं।"
महालक्ष्मी जी ने अपनी इच्छाशक्ति से एक निर्धन और
संतानहीन मनुष्य को धनवान और पुत्रवान बना दिया। इसके बाद वह शनिदेव से बोलीं,"देखिए शनिदेव मैंने सुकर्म करते हुए अपना कार्य कर दिया अब आप बाताएं आप क्या कर सकते हैं?"
शनि ने अपने सामान्य स्वभाव के अनुसार उस व्यक्ति पर दृष्टि डाली तो वह व्यक्ति गरीब हो गया।
पुनः उसकी ऐसी स्थिति हो गई कि वह पूर्व वाले स्थान परआकर भिक्षावृत्ति करने लगा। यह देखकर
माता लक्ष्मी आश्चर्यचकित हो गईं। तब माता लक्ष्मी,
अचंभित मुद्रा में शनिदेव से कहा कि,"हे सूर्यपुत्र! यह सब कैसी माया है और ये हुआ कैसे मुझे विस्तारपूर्वक बताएं।"
शनि माता लक्ष्मी से बोले,"हे महादेवी! इस मनुष्य ने अपने पूर्व जन्म में सहस्त्र निर्दोष लोगों का संघार किया था। इसने निजस्वार्थ हेतु पहले गांव के गांव उजाड़ डाले थे, जगह-जगह आग लगाई थी। यह मनुष्य क्रूर महापापी निर्लज्ज और परमअत्याचारी है। हे जगदीश्वरी! भले ही आप अपनी कृपादृष्टि से
इस महापापी मनुष्य को पुत्रवान और धनवान बना दीजिए परंतु इस महापापी मनुष्य के पूर्वजन्मों के कर्म कहां जाएंगे और इसके
पापकर्मो का घड़ा भर चुका है।"
शनिदेव ने माता लक्ष्मी को कर्मचक्र से संबंधित अनेक गूढ़ रहस्य बताए तथा शनिदेव ने महादेवी से कहा कि,"हे देवी नारायणी!इस संपूर्ण ब्रहमांड में मात्र कर्म ही प्रधान और संपूर्ण जगत का मूल भी कर्म ही हैं तथा संसार के सभी जीव-जंतु, पेड़- पौधे,
कीट-पतंगे सूक्ष्मजीव भी कर्म का फल भोगने के लिए विवश हैं।यहां तक की स्वयं परमेश्वर भी अपने बनाए हुए नियम और कर्मो में बंधा हुआ है। अतः हे देवी! मैंने इसके पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुरूप
ही इसे फिर से दरिद्र और संतानहीन बना दिया है तथा इसमें मेरा दोष नहीं बल्कि दोष उसके अपने कर्मों का है।"अंत में विनम्रतापूर्वक शनिदेव ने कहा,"हे नारायणी! जो लोग परोपकारी, सुकर्मी, तपस्वी, सदाचारी, दानी,
दूसरों की भलाई करने वाले होते हैं वे ही पूर्व जन्मों के
कर्मो को काटकर अपने अगले जन्म में ऐश्वर्यवान और पुत्रवान बनते हैं।"
इस प्रकार शनिदेव के वचन सुनकर माता लक्ष्मी अति प्रसन्न हुईंऔर उन्होंने शनि से कहा कि “हे न्यायाधीश सूर्यपुत्र! आप धन्य हैं। परमेश्वर ने आप पर अत्यधिक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है।आपके इस स्पष्टीकरण से मुझे कर्मचक्र के अनेक गूढ़ रहस्य समझ में आ
गए हैं और आपका सैदेव कल्याण हो।"
jogasinghwar. Blogaway
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