1.2.15

असहय होती है पराए की अपेक्षा अपनों के द्वारा दी गई चोट

असहय होती है पराए की अपेक्षा अपनों के द्वारा दी गई चोट
एक सुनार था। उसकी दुकान से मिली हुई एक लुहार की दुकान थी। सुनार जब काम करता, उसकी दुकान से बहुत ही धीमी आवाज होती, पर जब लुहार काम
करता तो उसकी दुकान से कानों के पर्दे फाड़ देने वाली आवाज सुनाई पड़ती। एक दिन सोने का एक कण छिटक कर लुहार की दुकान में आ गिरा। वहां उसकी भेंट लोहे के एक कण से हुई।सोने के कण ने लोहे के कण से कहा, ‘‘भाई, हम दोनों का दुख समान है। हम दोनों को एक ही तरह आग में तपाया और समान रूप
से हथौड़े की चोटें सहनी पड़ती हैं। मैं यह सब यातना चुपचाप सहन करता हूं पर तुम...?’’
‘‘तुम्हारा कहना सही है, लेकिन तुम पर चोट करने वाला लोहे का हथौड़ा तुम्हारा सगा भाई नहीं है, पर वह मेरा सगा भाई है।’’
लोहे के कण ने दुख भरे स्वर में उत्तर दिया। फिर रुककर बोला,
‘‘पराए की अपेक्षा अपनों के द्वारा दी गई चोट
की पीड़ा अधिक असहय होती है।’’

jogasinghwar. Blogaway

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